तुम्हारे जाने के बाद सहेज कर रखा है हर सामान
माँ, तुम्हारी अलमारी को आज भी संजोए रखा है।
पता नहीं क्यों दिल से लगा रखा है सारी चीज़ों को,
शायद तुम्हारे लौटने की आस अब भी छुपा रखी है।
कलेजा चीख़ उठता है उसका दरवाज़ा खोलते ही,
जब तुम्हारी इतनी यादें धुंधली सी बरसती हैं उससे।
हर सामान पुकारता है तेरे हाथों का स्पर्श,
हर धागा, हर रेशा तेरी महक से सराबोर है।
वक्त की धूल तो चढ़ती जाती है इनके ऊपर,
पर तेरे अस्तित्व की छाप अब भी एकदम ताज़ा है।
कैसे मिटाऊँ मैं तेरे होने के निशाँ,
जब तक साँस है, यह अलमारी तेरा इंतज़ार करेगी।
इसी तरह खोलता रहूँगा, रोता रहूँगा,
बंद करके फिर से सजाता रहूँगा...
क्योंकि जब तक यह अलमारी है,
लगता है तुम बस अभी लौटोगी माँ।
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मां
आसान तो नहीं था जीतना मेरे आंसुओं की लहरों से
खैर संभल सा गया हूं अब हकीकत के थपेड़े खाकर
तुम लौट कर नहीं आओगे मैं तुम्हे भुला नहीं पाऊंगा
बस इसी असमंजस्य में रह गई है जिंदगी सिमट कर-
आज से एक नया अध्याय लिखने की सोच रहा हूं पता नहीं कितना लिख पाऊंगा या शायद ज्यादा हिम्मत न ही जुटा पाऊं शब्द जोड़ने की। जीवन में ये बड़ा बदलाव आया है कि हमारी माताजी को कैंसर से आकर खटाक से जकड़ लिया है। हमें ज्ञात हुए कुछ दिन ही हुए है और सारे रास्ते भी अब बंद हो चुके है तो बस अब कुछ दिन ही बचे है उनके साथ। इसलिए जी रहा हूं इन लम्हों को क्योंकि पता है ये तो सच में लौट कर नहीं आएंगे। क्या लिखूं आंख तो अभी से भड़ने लगी है। वो फिल्मों में कहते है कल हो न हो पर यार जब पता हो न कि कल नहीं ही होगा तो अब बिखरने लगता है। दिन पर दिन करीब आती मौत को देखना बहुत कठिन है। चिता तो एक दिन जलती है पर उसकी चिंता में आदमी हर दिन जलता है। जब कोई इंसान जाता है अश्रु वेग फट पड़ता है पर जब किसी इंसान के जाने की आशंका मात्र में रोज जो आंसु बहते है उनसे कभी कभी तो लगने लगता है क्या वक्त आते आते ये खत्म तो नहीं हो जायेंगे ना। मां तो मां होती है यार मां को कैसे खो सकते है पापा पहले ही चले गए और अब ये भी छोड़ जाएगी। आधी रात को औंधे मुंह उठ कर बोलते ही मेरे लिए कुछ भी बना देने वाली तो कोई नहीं आएगी न पत्नी के साथ जो रिश्ता होता है वो कभी मां का परिपूरक नहीं हो सकता। उस रिश्ते की अपनी परिधि है खूबसूरती है पर बीवी कभी वो नहीं ममता नहीं दे सकती जो मां दे सकती है
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सोचा न था कभी हम भी इतना बदल जायेंगे
मिलेगी वो रास्ते में बिन नजर मिलाए गुजर जायेंगे
इश्क को मात दे कभी हम भी इतना आगे बढ़ जाएंगे
सब कुछ खो कर ही सही हम भी जीना सीख ही जायेंगे-
दूल्हा फिल्मी, दुल्हन फिल्मी, रिवाज रस्म फिल्मी...फिर अगर रिश्ते, एहसास भी फिल्मी निकलें तो दोष किसी का कैसे हुआ ?
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थक गया हूं करते करते दो नावों पर जिंदगी का सफर
सोच रहा हूं मुक्ति पा जाऊंगा डूबो दूं खुद ही इसे अगर-
कितना किस्मतवाले होते है वो
जो जिंदगी भर उनके साथ रह पाते है
जिनको खो देने के ख्याल भर से कभी वो खूब रोते थे-
उस दिन जो भी हुआ तुमने उसे गुनाह बना दिया
गलती हो भी गई तुमने तो उसे अपराध बना दिया
मुझे तो शायद उस वक्त कुछ होश नही था
पर तुमने क्यों खुद को नहीं रोक लिया था
फिसल कर लब यूंही तो लब से छू नहीं गए थे
तुम भी तो उस आग में बाती बन कर जले थे
टूट कर मैं जब बिखर रहा था बाहों में तुम भी तो जकड़ रहे
हर हरकत को बस तुम्हारी सहमति समझ भूल कर रहे थे
उस दिन जो भी हुआ तुमने उसे गुनाह बना दिया
गलती हो भी गई तुमने तो उसे अपराध बना दिया
सब कुछ इतना अचानक हो जाएगा कुछ अंदेशा भी नही था
इस आग की लपट से होने वाली बरबादी का अंदाज नही था
गर छुपा नही सकते थे इसे एक खूबसूरत याद बना कर
उससे भी बड़ा अपराध तो न करते इसे अपराध बता कर
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