Sanjay Kumar Jain   (#यायावर_दिल #SanjayJain)
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Joined 12 July 2019


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28 FEB AT 0:16

सोचा न था कभी हम भी इतना बदल जायेंगे
मिलेगी वो रास्ते में बिन नजर मिलाए गुजर जायेंगे
इश्क को मात दे कभी हम भी इतना आगे बढ़ जाएंगे
सब कुछ खो कर ही सही हम भी जीना सीख ही जायेंगे

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17 FEB AT 23:32

दूल्हा फिल्मी, दुल्हन फिल्मी, रिवाज रस्म फिल्मी...फिर अगर रिश्ते, एहसास भी फिल्मी निकलें तो दोष किसी का कैसे हुआ ?

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2 JAN AT 0:14

निकाह न फेरे
फिर भी तुम रहे मेरे

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28 NOV 2023 AT 10:51

थक गया हूं करते करते दो नावों पर जिंदगी का सफर
सोच रहा हूं मुक्ति पा जाऊंगा डूबो दूं खुद ही इसे अगर

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27 NOV 2023 AT 21:23

कितना किस्मतवाले होते है वो
जो जिंदगी भर उनके साथ रह पाते है
जिनको खो देने के ख्याल भर से कभी वो खूब रोते थे

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26 NOV 2023 AT 22:19

गुस्सा शब्द है
प्यार निशब्द है

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7 JUL 2023 AT 1:56

उस दिन जो भी हुआ तुमने उसे गुनाह बना दिया
गलती हो भी गई तुमने तो उसे अपराध बना दिया
मुझे तो शायद उस वक्त कुछ होश नही था
पर तुमने क्यों खुद को नहीं रोक लिया था
फिसल कर लब यूंही तो लब से छू नहीं गए थे
तुम भी तो उस आग में बाती बन कर जले थे
टूट कर मैं जब बिखर रहा था बाहों में तुम भी तो जकड़ रहे
हर हरकत को बस तुम्हारी सहमति समझ भूल कर रहे थे

उस दिन जो भी हुआ तुमने उसे गुनाह बना दिया
गलती हो भी गई तुमने तो उसे अपराध बना दिया
सब कुछ इतना अचानक हो जाएगा कुछ अंदेशा भी नही था
इस आग की लपट से होने वाली बरबादी का अंदाज नही था
गर छुपा नही सकते थे इसे एक खूबसूरत याद बना कर
उससे भी बड़ा अपराध तो न करते इसे अपराध बता कर

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1 DEC 2022 AT 9:15

ये सफ़र यहां खत्म हो रहा है। कइयों से मुलाकात हुई कईयों से बात हुई लिखते लिखते दोस्त बने। उनके बारे में तल्लीनता से जाना दिल के गम बांटे सुकून के कुछ पल बिताए। कुछ से न बात हुई न मुलाकात हुई फिर भी जैसे उनकी लेखनी से दोस्ती हो गई रोज पढ़ते लाइक करते कभी कभार एक टिप्पणी छोड़ देते। ये जैसे एक अलग परिवार था अनजानों से भी कुछ अलग जान पहचान थी। याद आयेंगे सभी जान ने वाले और वो भी जिनसे हिचक कर जान पहचान नही हो पाई। पर यकीन है न ख्याल रुकते है न शब्द आप सब दुनिया में जहां भी लिखोगे मुस्कुराहटे बिखेरोगे और कभी न कभी तो वापस आपके शब्द हमसे टकरा ही जायेंगे। अलविदा दोस्तो।

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18 SEP 2022 AT 1:15

That late night craving to talk to an opposite gender..

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14 SEP 2022 AT 23:29

कितना लम्बा अरसा हुआ कुछ भी लिखे हुए शायद कुछ सोचने की फुरसत भी तबियत से न मिल पाई इन दिनों में। सोचता भी क्या यादों पर भी वक़्त की परत सी जम चुकी है लिखता भी क्या इश्क की तो उम्र ही निकल चुकी है। अब तो बस वही घिसी पिटी जिंदगी है समझी समझाई जिम्मेदारियां है रटी रटाई हरकतें है। पर काफी कुछ अधूरा रहा है इस जिंदगी में जिन्हें पूरा करने की हसरत भी नही बची पर लौट कर आऊंगा जब अगले जन्म में तो शायद बहुत कुछ करना है। शायद थोड़ी गलतियां कम या फिर और भी ज्यादा।

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