11 JAN 2019 AT 9:28

*शिशिर ऋतु कविता*

रात लंबी और सवेरा दूर है
चाँद में देखो नहीं कोई नूर है
छा रहा कुहरा धुवां भी हर तरफ
मेरा सूरज अब भी मुझसे दूर है
गौरैया भी घोसलें से झाँकती
शिशिर की ठंडी हवाएं भरपूर है
मन रजाई में पड़ा दुबका हुआ
उसमे अब भी शोर तो भरपूर है
चाँद तन्हा रोया शायद रात भर
सुबह बिखरी ओंस भी चहुओर है।

- संजय कुमार गुप्ता