sanjay bhardwaj   (संजय भारद्वाज)
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लिखता हूँ सो जीता हूँ।
Joined 3 July 2019


लिखता हूँ सो जीता हूँ।
Joined 3 July 2019
4 APR AT 7:59

*अबाध*

कब तक घिसोगे कलम?
कब तक करोगे यूँ नि:शुल्क सृजन?
नि:शुल्क, सेवा का साधन था तब
नि:शुल्क, निरर्थक का पर्यायवाची है अब,
निस्पृहता छोड़ो, व्यवहार से नाता जोड़ो,
सत्ता, संपदा के अनुगामी बनो,
अपने जीवन में संपन्नता का स्वाद चखो..,
अबाध रही वैचारिक रस्साकशी,
उनके उदाहरणों में जमे रहे राजर्षि,
मेरे उद्देश्यों में बसे रहे ब्रह्मर्षि..!

*संजय भारद्वाज*
writersanjay@gmail.com
रात्रि 10:37 बजे, 23.3.24

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29 MAR AT 11:09

*माप*

हथेली भर राख में
सिमट गया है,
यह वही आदमी है,
जो खुद को
माप की परिधि से
बड़ा समझना रहा
जीवन भर ...!

*संजय भारद्वाज*
writersanjay@gmail.com

(प्रातः 6:13 बजे, 20 मार्च 2024)

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24 MAR AT 7:31

*प्रह्लाद*

मेरे लिखे ख़त
जब-जब उसने
आग को दिखाए,
काग़ज़ जल गया
हर्फ़ उभर आये,
झुंझलाई, भौंचक्की-सी
हुई बार-बार दंग
कई होलिकाएँ जल मरीं
प्रह्लाद सिद्ध हुआ
हर बार मेरे प्रेम का रंग!

नेह और सौहार्द का प्रह्लाद चिरंजीव रहे।
होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।

- संजय भारद्वाज
writersanjay@gmail.com

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23 MAR AT 6:43

*अनहद*

एक लहर आती है,
एक लहर लौटती है,
फिर नई लहर आती है,
फिर नई लहर लौटती है,
आना, लौटना,
पाना, तजना,
समय के प्रवाह में
नित्य का चोला बदलना,
लहरों के निनाद में
सुनाई देता अनहद नाद,
अनादि काल से
समुद्र कर रहा
श्रीमद्भगवद्गीता का
सस्वर पाठ...!

*संजय भारद्वाज*
writersanjay@gmail.com
प्रात: 6:14 बजे, 23 मार्च 2023




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20 MAR AT 6:38

*मुट्ठी*

समय को
मुट्ठी में रखने का
सूत्र पता होने का
जिसे भ्रम रहा,
कालांतर में ज्ञात हुआ,
वह स्वयं सदा
समय की मुट्ठी में
बंधा रहा...!

*संजय भारद्वाज*
writersanjay@gmail.com

(प्रात: 5:59 बजे, 20 मार्च 24)

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11 MAR AT 12:34

*दर्शन*

प्रवाह रुका है, हिमनद जमा है,
सृजन थमा है...,
दृष्टि के फेर में दर्शन छिपा होता है,
ठहराव सदा
आशंका से ठिठका नहीं होता,
ठहराव बहुधा
संभावना से लबालब भरा होता है!

*संजय भारद्वाज*
9890122603
writersanjay@gmail.com
(रात्रि 10:48 बजे, 10.03.2024)

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8 MAR AT 9:06

🕉 नम: शिवाय!

*त्रिकाल*

कालजयी होने की लिप्सा में,
बूँद भर अमृत के लिए,
वे लड़ते-मरते रहे,
उधर हलाहल पीकर,
महादेव, त्रिकाल भए..!

(कवितासंग्रह 'क्रौंच' से।)

*संजय भारद्वाज*
writersanjay@gmail.com

हलाहल की आशंका को पचाना,
अमृत होने की संभावना को जगाना है।
महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई।




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2 MAR AT 9:00

*देह रहते..*

एकालाप होता है
मौन वार्तालाप,
एकालाप होता है
कल्पना में होता संवाद,
साँसों का अनवरत क्षरण,
मृत्युपथ पर बढ़ते चरण,
मेरी सुनो,
रोष, आक्रोश, खीज, क्षोभ
सबसे मुक्ति पा लो,
देह रहते,
दो घड़ी साथ बैठो,
दो घड़ी बतिया लो..!

*संजय भारद्वाज*
writersanjay@gmail.com
रात्रि 9:15 बजे, 29 फरवरी 2024

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1 MAR AT 14:09

*क्षितिज*

छोटे-छोटे कैनवास हैं
मेरी कविताओं के ;
आलोचक कहते हैं,
और वह बावरी
सोचती है-
मैं ढालता हूँ
उसे ही अपनी
कविताओं में,
काश!
उसे लिख पाता
तो मेरी कविताओं का
कैनवास
क्षितिज हो जाता!

संजय भारद्वाज
writersanjay@gmail.com

( संध्या 5:31, दि. 25 दिसंबर 2015)

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23 FEB AT 6:46

*ऋतुराज*

हर क्षण तन छीज रहा,
हर क्षण मन रीझ रहा,
जितना छीजता, उतना रीझता,
छीजना, रीझना, स्वयं पर खीजना,
विरोध का आभास अथाह,
विरुद्ध का समानांतर प्रवाह,
तब पाट का आकुंचन होना,
समानांतर का मिलन होना,
अब न छीजना, अब न रीझना,
भीतर-बाहर मानो संत होना,
देहकाल में ऐसा भी वसंत होना...!

संजय भारद्वाज
writersanjay@gmail.com

( 11:15 बजे, मकर संक्रांति 2024)

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