Sanjay Aswal   (#मैं क्या लिखूं अब)
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बस जब मन हो लिख दो, जज्बातों को शब्द दो,श्रृंगार दो,बस उड़ने दो जहां चाहे जब चाहे।।।
Joined 16 January 2020


बस जब मन हो लिख दो, जज्बातों को शब्द दो,श्रृंगार दो,बस उड़ने दो जहां चाहे जब चाहे।।।
Joined 16 January 2020
7 FEB 2021 AT 9:37

चलो अब अलविदा कहते हैं,
ख्वाहिशें हुई तमाम
उम्मीदों को
अब संवरने देते हैं,
जो ख्वाब रह गए अधूरे
इन आंखों में,
उन्हें फिर से सजने देते हैं,
जो प्यास रह गई
अधूरी इन अधरों में,
उसे बुझने देते हैं,
जो आस टूटी
इस दिल में
उन्हें फिर पनपने देते हैं
चलो अब अलविदा कहते हैं!!!!

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2 FEB 2021 AT 12:51

#मुक्त आत्मा # #
वो छोड़ गया
अपना मृत
खोखला शरीर,
अपनों के लिए
उनका कर्ज उतार कर,
पर आत्मा
उसकी आजाद हो गई
इस कारावास से,
अब उसे
मोह के भटकन से
मत रोको
जाने दो,
हासिल करने दो उसे
अपनी आत्मा की
अथाह ऊंचाइयां,
एक नए
लक्ष्य के साथ।

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30 JAN 2021 AT 11:51

साथ चलने के बहाने ढूंढता हूं
मैं तुम्हे पाने के बहाने ढूंढता हूं
खोजता हूं मैं तुम्हे ख्वाबों खयालों में इस कदर
इश्क़ बन जाओ तुम मेरा मैं ये बहाने ढूंढता हूं।

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28 JAN 2021 AT 18:52

दिल एक बंद किताब सी
जिसमे जिंदगी के
रंगीन सुनहरे पन्ने छपे हैं,
कुछ अधूरे खाली खाली से
कुछ फलसफों से भरे हैं।
कुछ बड़े नाज़ुक से हैं
जो बड़े जतन से रखे हैं,
छू लेने भर से जिन्हें
फटने का डर होता है।
कुछ में प्रेम की पाती
सी चहक होती है
जो फूलों की खुशबू से
महक रहे होते हैं।
कुछ में नफरतों के
बीज संजोए होते हैं,
काली स्याह भरी रातों में
दर्द में लिखे होते हैं।
कुछ में मुरझाए फूल
बस आह भरते रहते हैं,
किसी टूटे दिल की
दुहाई हरदम देते हैं।
दिल उसे बस इन्हें
संभाल कर रखना होता है
बांध नर्म तिजोरी में
लाख तहों में रखना होता है।
ना टीस उभर आएं
ये ख्याल बस रखना होता है
यादों को दर्द से और
सपनों को टूटने से
बचाना होता है।

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28 JAN 2021 AT 17:02

मन बेशक चंचल होता है
पर जब ठहरता है
किसी ठौर पर तो अपने को बांध लेता है
भावुकता में,
और फिर जो कश्मकश शुरू होती
वो अंत तक साथ चलती है।

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26 JAN 2021 AT 9:49

#मरी आवाजें # # #
वो मांग ही क्या रहे हैं तुमसे
अपने हिस्से की जमीं,
आखिर तुमने अब तक
उन्हें दिया ही क्या है,
भूख लाचारी बेबसी
आंखों में आंसू बस,
और उस पर सदियों से
तुमने उन्हें जोता है हल पर
कोल्हू के बैल कि तरह,
निचोड़ा है उनका अंग अंग
अपने खूनी पंजों से,
उनकी सूखी
झुर्रिदार खाले
जो लटक रही हैं
उनके ही कांधों पर बेहिसाब
सदियों का बोझ लिए,
तुमने वो भी चाब डाले हैं अपने
जहरीले दांतों से,
बस छोड़ दिया है
कुछ बूंदे खून की उनके जिस्म में,
जिससे वो रेंगते रहे हजारों साल
तुम्हारी गुलामी मे,
उनके माथे से टपकता पसीना
जब मिट्टी में मिल जाता है
तो धरती रोती है दर्द सहती मगर
आत्मा रिसती है उसकी लगातार,
उस पर भी तुम छीन लेते हो बचा खुचा
छोड़ देते हो उन्हें जीर्ण शीर्ण,
मरी आवाजें शोर नहीं मचाती है
बस सुबकती हैं
हार कर।




खुद स्याह से पड़ गए हो

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25 JAN 2021 AT 22:21

कविताएं मौन होती हैं
पर बहुत कुछ इशारों में कहती हैं,
उसे बस दिल से सुनना होता है
कविता के गहरे अर्थों को समझना होता है,
उसका बन कर उसका होना होता है,
कभी शांत बैठे दूर आसमान में टकटकी लगाना
उड़ने का मन करे तो उड़ जाना,
गहरे समुंदर सा ठहर जाना,
कल कल बलखाती नदी सा बह जाना,
हवा सा सरगम लहराना
कानों में चुपके कुछ कह जाना,
फूलों का श्रृंगार कर बगियां में महक जाना,
भंवरों सा मंडराना,
अक्षरों को उलटना पुलटना
जो जी हो लिख जाना
बस उसका हो जाना,
उसे बाहों में भरना कस कर लपेटना होता है,
कविताएं भी प्रेम करती है
मगर धीरे धीरे से दिल में उतर कर
अपने ही अंदाज में........!!!

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23 JAN 2021 AT 16:41

# #मेरा गांव # #
वो पहाड़ों के शिखर मे बसा मेरा गांव
आसमां में तारे सा टिमटिमाता मेरा गांव।
वो पनघट का पानी खुशियों के मेले
गांव की मिट्टी में थड़या झुमेले।।
वो पीपल की छांव में देवों का वास
मंगेरूं के पानी से बुझ गई मेरी प्यास।
वो आम के बागों में कोयल की कूक
कोदा झंगेरू से मिटती है भूख।।
वो गायों का रंभाना गौ धुली की धूल
खेतों खलिहानों में खिले सरसों के फूल।
वो गाड गधेरों का बहता पानी
सोंधी मिट्टी की अपनी कहानी।।
वो मंदिरों में बजती मधुर घंट्टियां
जंगली फूलों की खिलती कलियां।
वो मां के हाथों का स्वादिष्ट भोजन
मंडुवे की रोटी मे ताज़ा मक्खन।।
वो गांव की शीतल ठंडी हवाएं
गालों को चुपके से मेरे छू जाएं।
याद आता है अक्सर मुझे मेरा गांव
बड़े सरगोशियों से बुलाता मुझे मेरा गांव।।






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23 JAN 2021 AT 14:53

#भूली बिसरी यादें #
गांव से शहर क्या आए
जिंदगी रूठ गई
सुविधाओं के पीछे भागते भागते
ये भीड़ हो गई,
कहां गई वो खुशियां क्यों जिंदगी ठहर गई
अच्छे भले इंसान थे
अब मशीन हो गई,
गांव की यादें अब दिल में रह गई हैं
खुशबू मिट्टी की आंखों को नम कर गई हैं,
गांव और पहाड़ की बातें अब गुजरा जमाना हो गया
शहर के ठेलम ठेल मे जिंदगी हल्कान हो गई,
इस शहर ने हमको सिर्फ दर्द ही दिया
गांव की मिट्टी खुले आसमां से महरूम कर दिया
अपनों को रुलाया अपनों से दूर किया
जिंदगी ने बेवजह हमको क्यों यूं रुखसत किया,
ये शहर खा गया है हमसे हमारी पहचान
हैं हम पहाड़ी, थी हमारी शान
बस सब यादों में रह गया
गांव का छोरा शहर में आके
अब शहरी हो गया।


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21 JAN 2021 AT 12:15

जिद है तुझे कुछ पाने की
जिद है आसमां छू जाने की
जिद है तू सही देखे
जिद है कुछ ना गलत होने दे
अगर गिरता है तू हौसला रखना
अपने कर्मों पर सदा भरोसा रखना
यहां हर मोड़ पर कांटे मिलेंगे
इन्हें पार पाकर ही शिखर मिलेंगे
बस जिद करना मंजिल पाने की
जिद सफल हो जाने की
आग सीने में जलाए रखना
हार मे संयम बनाए रखना
मंजिल तुझे फिर मिल जाएगी
आंधियों में रोशनी हो जाएगी
दृढ़ विश्वास यही सफल जीवन का मूलमंत्र
इसको ना कभी खुद से डिगने देना
हिम्मत खुद मे बनाए रखना
हारने का डर फिर नहीं सताएगा
अगर विश्वास है तुझे खुद पर
हर तरफ तेरा परचम लहराएगा
इतिहास फिर तू रचेगा
डर के आगे जीत है
यही सबसे कहेगा।


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