सुनो !
कहा हो यार ?
चले आओ के हमने अकेले बनारस देखा है
अस्सी पर कुल्हड़ तोड़े है
अकेले घूमे है BHU की सड़कों पर
कदमों के निशान भी छोड़े है
गंगा आरती में मेरे दांयी ओर बस एक तुम्हारी कमी रही
सब हमसे आगे निकल गए , हमारी निगाहें वही पर थमी रही
काशी के गलियों में हम अकेले भटके है
तेरे जिक्र पर दोस्तो के सामने कई बार अटके है
बनारसी पान भी मैंने अकेले खाया पर वो मिठास नही था
कोई हो रहा था तुम्हारे इंतज़ार में बनारस तुम्हे ये अहसास नही था ।
के सुनो !
जहां हो अब चले आओ , वो बनारस अब भी तुम्हारे इंतजार में है
क्या कहा मेरी बातों में झलकता है बनारस , अरे हम खुद बनारस के प्यार में है !!
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