पहनावा ही पहचान है
कपड़ो में छिपा इंसान है
"नेवर जज" की पीढ़ी
कपड़ो से जज करती है
कोटपैन्ट को जेंटलमैन
धोती को असभ्य कहती है।
धर्म-कर्म के आधार पर भी
कपड़ो के कई प्रकार हैं
कपड़ो से ही तय होते
मानो इनके विचार हैं।
अमीरी-गरीबी की रेखा
हमने कपड़ो से ही पहचानी है।
दुष्कर्म पीड़िता के दर्द की वज़ह
सबने कपड़ो को ही मानी है।
हर अवसर पर अलग अलग
कपड़े भी रंग बदलते हैं
सफ़ेद-काले दुःख में ओढ़
ये अपना ढंग बदलते है।
©Sanjana
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