ये हमारा हिन्दुस्तान न्यारा
हे इस जहां में सबसे प्यारा
फहराया तिरंगा बड़ी शान से
आज़ादी नाम मिला वीरों के बलिदान से
गांधी,जवाहर ,भगत, लड़े अपनी जान पे
लगी गूंजने चारों दिशाएं वीरों के गुणगान से
ये हमारा हिन्दुस्तान न्यारा
हे इस जहां में सबसे प्यारा
बलिदान अपना हरदम देंगे यह हमारा मान है
तिरंगा कभी ना झुकने देगे यह हमारी शान है
हाथ न शत्रु के आने देगे शत्रु से हमको आन है
रोक सके तो रोक लो जाए,चाहें अपनी जान से
ये हमारा हिन्दुस्तान न्यारा
हे इस जहां में सबसे प्यारा
अंग्रेज जो आने की सोचे अब भी
टीपू ,आजाद ,चन्द्र , दयानन्द बन जाए हम
नही झुकेंगे किसी उग्रवादी के आगे -✍️Sania Amir❤️
देश के लिए फांसी भी चढ़ जाए हम
ये हमारा हिन्दुस्तान न्यारा
हे इस जहां में सबसे प्यारा ।
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कुछ पंक्तियां उन के लिए जिन्होंने हमे पौधों की तरह सींचा!
उन शिक्षकों को कोटि-कोटि प्रणाम
जिन से मिली हमको नई पहचान ।
ना भुला सकेगे आपका यह एहसान
आपसे मिला हमको ऐसा स्थान।
ईश्वर ऐसा दे हमको वरदान
हमेशा कर सके शिक्षकों का सम्मान।
पढ़कर पा लिया हमने ऐसा संसार
जो होता हे हम सब से अनजान।
उन शिक्षकों को कोटी कोटी प्रणाम
जिनसे मिली हमको नई पहचान।
-✍️ Sania Amir❤️
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ऐ बशर ना तुझमें है फरागत मरासिम संभालने की
हुआ जा रहा है अदनी मोहब्बत गवा कर अपनो की
اے بشر نہ تجمے ہے فراغت مراسم سنبھالنے کی
ہوا جا رہا ہے ادنی محبّت گوا کر اپنوں کی
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वास्ता-ए-परतईश को कर रहा अपनी तकमील खराब
ऐ इब्न-ए-अदम क्यों कर रहा तू ऐसी राह इंतेखा़ब
واسطہ-اے- پرتائش کو کر رہا اپنی تکمیل خراب
اے ابن-اے-آدم کیوں کر رہا تو ایسی راہ اِنتخاب۔-
गर्दिशे-ए-अय्याम भी आंसा लगने लगे
जब आप कदम-बा-कदम मेरे साथ चलने लगे-
नादान सी लड़की मैं यही है मेरा बचपन,
भाइयों की लाडली बहनों की छोटी हूँ।
माँ–बाप पाए हैं मैंने यही खुशनसीबी आन है,
नादान सी लड़की मैं बस यही मेरी पहचान है।-
तुम नही चाहते,
हम हमेशा चाहेगें ।
कोशिश चाहें हजा़र करो दूर जाने की,
हम उतने ही करीब आ जाएगे।
जिंदगी हे आप हमारी
आपके बिन एक अधूरा ख्वाब हे।
खिलते हे कली की तरह,
आप बिना मुरझाया गुलाब हे।
मोहबब्त इस कदर हे आपसे,
दूर होकर भी करीब होने का अहसास दिलायेगे।
तुम नही चाहते,
हम हमेशा चाहेगे।
-Sania Amir
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ऐ बशर क्यों हे , तुझमें इतनी अकड़
बेखौफ हुए जा रहा कुछ तो खोफ कर।
मरासिम तू खुद अपने गवाएं बैठा हे
फिर भी अपना रहा तू यही डगर ।
हो रहा अदनी जेहनियत अपनी गवा कर
कर रहा ऐश तकमील अपनी भुला कर।
ना कर गुरूर इस माल-ओ-दौलत पर
हो जाना तुझे एक दिन मिट्टी के सुपुर्द।
क्यों जा रहा तू खुद जहन्नुम की तरफ
ऐ इब्न-ए-आदम जरा थोड़ा तो सम्भल।
- Sania Amir
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