Sanghpriya   (संघप्रिया)
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बिल्कुल अपने नाम की तरह 🌼
Joined 25 January 2019


बिल्कुल अपने नाम की तरह 🌼
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27 NOV 2024 AT 23:29

खंजर......
हाँ शायद खंजर ही या कुछ और नुकीला दिखा नहीं पर चुभता है सीने में
दर्द होता है पर सभंलता नहीं......

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27 NOV 2024 AT 23:20

शांत

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18 APR 2022 AT 20:28

मुझे न बस एक बात की तकलीफ है, मुझे हर बात पर तकलीफ क्यों होती है — % &

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27 MAR 2022 AT 20:55

लगता है मैं अब लिखना भी भूल गई
कुछ शब्द तिरछे कुछ लिखना भूल गई

पत्थर से टकराते टकराते अब आदत गई
जख्म याद हैं,जख्म याद कर रोना भूल गई




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27 MAR 2022 AT 20:48

तकलीफ तकदीर तसल्ली तीमारदारी तन्हाई जैसे कुछ शब्द रह गये हैं। इससे अच्छा था मोहब्बत कर ली होती यादें तो साथ रहती किसी की। — % &

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27 MAR 2022 AT 20:40

इंसान नहीं इंसान का काम करने का तरीका पसंद आता है लोगों को — % &

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25 FEB 2022 AT 21:35

न तुम गलत न हम गलत
है नजरिया अलग
एक ही फलक — % &

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9 FEB 2022 AT 22:55

दर्द ही तो है। फर्क ही तो है
दर्द का अपना मजा है। तुम,तुम हो
मैं, मैं हूं
बात मैं करुं या तुम। फर्क का अपना मजा है
तर्क का अपना मजा है

रोते हुए न छोड़ना मुझे
तेरा जाना एक सजा है

गर रुठे कोई मनाना
पड़ेगा, न मनाओ
तो समझना पड़ेगा
दूर रहना भी
अल्लाह! की एक रजा है — % &

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3 FEB 2022 AT 23:43

स्वतंत्र सोच वाली स्त्री हर पुरुष की पसंद है
पर अपनी स्त्री और बेटी को मुट्ठी में रखते हैं





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2 FEB 2022 AT 18:07


किसी को हमारा रहना भी खटक रहा,
किसी हमारा जाना भी खटक रहा,
क्या करें, जीना तो नहीं छोड़ सकते।न!
गर किसी को हमारा साँस लेना भी खटक रहा

कहीं कोई अपनी मंजिल से भटक रहा,
कोई मंजिल की तलाश में भटक रहा
भटकना तो हर कहानी का घटक रहा

मेहनत का पसीना कहीं टपक रहा
कहीं तेज गर्मी से कोई तड़प रहा
एक को फल की इच्छा है,दूजे को ठंडी हवा चाहिए
दोनों की चाहत में, बस इतना सा फर्क रहा


एक घर, लड़ाई-झगडे़ से खनक रहा
रिश्तों में बैठा खट्टा सा नमक रहा
एक घर की लड़ाई में देखो
पूरे मोहल्ले का चेहरा चमक रहा — % &

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