जो लोग जैसा करते है
मैं उनके साथ वैसा ही करती हूँ
लेकिन
अब लोग ये क्यों कहने लगे कि मैं बदल गई हूँ?-
पहले कदम की शुरुआत करती है
अंधेरो में दिये सा उजाला बनती है ।
माँ .............
शब्द सुनकर ही चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ जाती है
और सारी परेशानियाँ जैसे छू मंतर हो जाती है ॥-
नज़रे तरस रही है वो खुशमिजाज जहां देखने को
पक्षी की चहचहाहट और इंसानों की चहल कदमी को
आज थम सी गई है जिन्दगी और चारो ओर शोर है
ये परलय का आया कैसा विनाशक दौर है |
-
लड़कियों को सिर्फ नवरात्रों में ही मत पूजो
ये वो धरोहर है जिससे मकान एक घर बन जाता है।
-
होलिका दहन के साथ
अपनी नफरतों को भी जलाना ।
हर जगह खुशियाँ फैले
इस बार ऐसी होली मनाना ॥
गले मिलने के साथ
अपने विचारों को भी मिलाना ।
गुलाल के जैसे ही
सबके रंग में रंग जाना ॥
गुजियाँ बनाने के साथ
उसकी मिठास को दूर तक फैलाना ।
देश की अनेकता को
एक धागे मे पिरोना ॥
हर जगह खुशियाँ फैले
इस बार ऐसी होली मनाना..........😊
-
हाँ..... मैं एक नारी हूँ
सावन के ऋतु जैसे मुस्कुराती हूँ
अपनों के हर रंग में रंग जाती हूँ
कहने को तो नाम अनेक पर मैं एक हूँ
हाँ..... मै एक नारी हूँ ।
कभी बेटी बन घर में इठलाती हूँ
कभी पत्नी बन घर को सवारती हूँ
तो कभी माँ बन घर की सारी जिम्मेदारी उठाती हूँ
हाँ..... मैं एक नारी हूँ ।
वैसे तो विश्व के लिए कल्याणकारी हूँ
पर कोई मुझे रौंदना चाहे तो काली हूँ
समाज की कुरीतियों का आईना हूँ
हाँ..... मैं एक नारी हूँ ।-
जिन्दगी का मिजाज कुछ अलग सा हो गया है
चेहरे पर मुस्कान तो है पर दिल का दर्द बढ़ सा गया है ।
कलियों को खिलखिलाते सभी ने देखा
बागो पर वह फूल बन आज मुरझा सा गया है।
-
चलो इस गणतंत्र दिवस पर यह प्रण लेते है
आपस का बैर छोड़कर हिन्दुस्तान को महत्व देते है ।
इसकी प्रगति के साथी और साक्षी बनकर
चलो विश्व विजेता बन तिरंगा फहराते है ।
-
आज भी
बेटे का जन्म अभिमान
बेटी का जन्म अपमान क्यों ?
बेटे की इतनी इज्जत
बेटी की इज्जत तार-तार क्यों ?
हो रही चारो ओर समानता की बातें
फिर बेटा - बेटी मे भेदभाव क्यों ?
जो खामोश हो गई पीड़ा सहते - सहते
उन्हें न्याय दिलाने में इतनी देरी क्यों ?
बेटी दिवस सब मना रहे
सोचो ये नाटक सब रचा रहे क्यों ?
-
दिल और दिमाग की कशमकश तो देखो
दिल रोता बहुत है
और
दिमाग सोचता बहुत है ।-