Sandip Patil   (दीप)
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Joined 30 May 2018


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Joined 30 May 2018
19 JUL 2022 AT 21:18

मिलन की आस लिए कैसे कैसे नकली अरमान हम बुनते है
दीवार से सटाकर ख्वाबो मे उसके लब कभी पेशानी चमुते है

पुराने मंजर याद आये तो तड़प उठाते कभी मचल हम उठते है
दफ्तर में काम करते वक़्त बेवक्त जेहन से भटक हम जाते है

इतनी कोशिश के बाद भी उसकी नजरो में मानो गैरजरूरी से हम है
क्या ये तुम्हारा जुल्म नही मेहमिल में मुस्कुराते और अकेले में रो हम देते है

कभी पुकारो हम को दिल से कभी मिलो हम से चंद लम्हे कुछ चंद पल
सच सच कह दो दिल तुम भी रखते हो और हम भी दिल रखते है

गर मुझसे मोहब्बत नही तो फ़क़त इक बार अपनी जुबान से कह दो
गले मे तेरे नाम की रस्सी डाल लटक गए मगर अचम्भा नही हम मरते है

#दीप






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13 JUL 2022 AT 11:48

उसने होंठ सील रखे है जिसका दिल सदा देता है
पढ़ने का हुनर आ जाए तो चेहरा सब बता देता है

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5 JUL 2022 AT 22:49

तुम जितना सोचती हो उतना तो नही हिज्र आसान होगा
राधा सी प्रेयसी रोयेगी जब उससे जुदा उसका मोहन होगा

फिर कान्हा भी जा मिलेगा आखिर मजबूरी मे रुक्मिणी से
घिसेगा किसी और पत्थर पे महका कहि और चन्दन होगा

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2 JUL 2022 AT 22:20

गहरे पानी मे उतरकर जैसे कश्ती डूब काजग की जाती है
उसकी इक झलक देखता हूं मेरी धड़कन तेज हो जाती है

उससे नजरें मिलने की ख़्वाहिश मगर हिम्मत कहा जुट पाती है
मै जब भी बीज बोता हु उसकी लागत ज्यादा उपज कम जाती है

वो नही समझ पाती मेरे अहसास,मेरा दिल,मेरे गहरे जज़बातों को
उस किनारों से टकराकर मेरी उम्मीद की लौट कर मौज आती है

हम दिन रात याद करते है उसको जैसे इम्तिहां हो शागिर्द का
मै खामोश हो कर चीखता हु मगर उसे कब मेरी आवाज आती है

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2 JUL 2022 AT 22:00

अच्छा भी लगता है उसको,उसका दिल भी दुखता है
वो माँ जिसका बच्चा पहली बार किसी स्कूल जाता है

लब्जों मे कैसे बयां करे कोई अपने जज़बातों को
आंगन का इक छोटा सा पौधा पेड़ बन बढ़ जाता है

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30 JUN 2022 AT 21:55

इक अरसा हो गया उसका चेहरा निहारा नही गया
जख्म ताजा रखा है अभी मुक़म्मल भरा नही गया

मिलन की आस लिए उसकी घुट घुट कर जी रहे हैं हम
अभी दरमियाँ धुंध बाकी है छट अभी कोहरा नही गया

काश ऐसा मंजर आये सीने से लगे वो लौट पुराने दिन आये
अभी सर पे इश्क़ मंडरा रहा अभी उम्मीद को मारा नही गया

दीप






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29 JUN 2022 AT 22:25


जिससे हम मोहब्बत करते है वो हमको इग्नोर करता है
माना के वो इश्क़ करता है मगर ना-बराबर करता है

हम पहले पहल कर तब जा कर गुफ़्तुगू करता है वो
कैसे मान ले हमारे जज़बातों की कद्र वो बेकदर करता है

दिलाता रहता है वो हरदम अहसास के हम बहुत बिजी है
अपनी अकड़,आदतों से वो छलनी मेरा जिगर करता है

यार इश्क़ है तुमसे,बहुत है हा सच मे यकी करो बहुत है
मैं कैसे यकीन दिलाऊ तुमको,क्या करूँ जो जादूगर करता है

मैं सुबह आवाज देता हूं तो जवाब देने मे दोपहर करता है
कारगर मेरे नर्म नाजुक दिल को तोड़कर खंडहर करता है

दीप





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29 JUN 2022 AT 22:13

लब्जो में कैसे बया करे जो हालत है दिल के अंदर की
हलकान को प्यास लगी पड़ी है अपने यार के दीदार की

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28 JUN 2022 AT 12:29

पहले माहौल,फिर मौसम बनता है बाद बारसात होती है
लंबा वक्त लेना पड़ता है तब जा कर के मोहब्बत होती है

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19 JUN 2022 AT 21:35

हिजरत हो जाने के बाद फिर कभी वस्ल नही करूँगा
मै दरिया रास्ते मे सुख जाऊंगा समंदर मे नही उतरूंगा

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