Sandhya Tetariya   (भोर)
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Joined 5 April 2020


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21 HOURS AGO

ईमान की खातिर,मिलकर हिसाब कर।
मैं कब से लिख रहा हूं,पढ़कर किताब कर।

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2 SEP AT 13:53

बेशक न लिख ख़त मुझे,
मगर यूं खतों के बक्से पर
लटका ताला अच्छा नहीं लगता।
बेशक न कर बात तू मुझसे,
मगर शक्ति बिना
शिवाला अच्छा नहीं लगता।
बेशक न लिख कहानी मेरे नाम से
मगर बिना दोस्त, दोस्ती के किस्सों का
हवाला अच्छा नहीं लगता।

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1 SEP AT 11:50

कभी कभी हम उन्हें नाम से पुकारते हैं,
लौट आते हैं शब्द,बादल घनघोर बरस जाते हैं।

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31 AUG AT 15:25

अमृता तुम्हारे होने तक
इश्क़ भी था..
तुम नहीं,
इश्क़ भी चला गया।

-इमरोज़

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30 AUG AT 17:15

चूम कर मुस्कुराहटों ने उलझनों से कहा,
चलो उलझकर कर ज़िन्दगी फिर इंतज़ार करते हैं।

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28 AUG AT 14:41

चाहती तो एक खत से मना लेती,
अब खुद ही मान जाना बेहतर समझा।

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28 AUG AT 14:39

भेजी गई चिट्ठी जब बैरंग लौटती है
डाकिया ख़त और वो शहर
सब रूठ जाते हैं।

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27 AUG AT 14:29

घोल के दर्द को चुपचाप पी गया।
देख ले रे नीलकंठ! मैं भी जी गया।

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26 AUG AT 8:54

फलक तक से ढूंढ लायेंगे सितारे
जो खोया हो मर्ज़ी से अपनी
उस चांद को, चकोर कैसे पुकारे।

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25 AUG AT 13:35

तुम्हारा जाना गलत नहीं,
तुम्हारा आना गलत था।

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