Sandhya Tetariya   (भोर)
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Joined 5 April 2020


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4 MAY AT 17:56

तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं...

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4 MAY AT 17:07

नहीं,

नहीं।

ये बात ,वो बात,सब बात हो गई।

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3 MAY AT 14:19

मैंने गुलमोहर को देखा है
जो जलते सूरज के साथ खिल उठा

कितने अलग हैं न सूरजमुखी और गुलमोहर
सूरज की बात ही क्या कहें
सर्दियों से गर्मियां का सफ़र सूरज का
फूलों के साथ ही रहा बस।

तुम!गुलमोहर के पेड़ जैसे हो सख्त और हरे ।

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3 MAY AT 13:07

मैं रोज हारता हूं बिना शर्त लगाये
वो रोज जीतता है, दांव पर लगा के।

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29 APR AT 23:36

मैंने उसे जागने की आजादी दी
और उसने रात भर सोने की
वो सूरज और चांद हैं।

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29 APR AT 17:34

मैं कल्पनाओं की टहनियों पर लटकर
इस बात की तफ्तीश कर रहा हूं कि...
जिन्दगी की ताल पर झूमने का हुनर,
इन बाजूओं में है भी कि नहीं ।

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29 APR AT 17:17

अकेलेपन में खिले उठते हैं ख़त।
ख़त में ,मुरझा जाता है अकेलापन।

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26 APR AT 13:22

हे शिव प्रिय !
मेरे पास तुझे अर्पण करने के लिए
पुष्प,पत्र एवम् प्रेम मात्र था।
बलिदान के लिए मेरा अंहकार,
क्रोध, वासना एवम् किंचित समय था ।

भोग हेतु मदन दुग्ध,मधु,रसीले फ़ल
स्नान हेतु नयन जल,
सुवासित धूप चंदन एवम्
माधुर्य संजीवन सम औषधि थी।

मेरा सर्व समपर्ण ही मेरी भक्ति,भजन,
संध्या कीर्तन का मुखरित स्वरूप है ।

इससे अधिक कोई प्रेम भेंट क्या दे सकता था।

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25 APR AT 23:32

सज्जनता, मनुष्य जाति का ही गुण है। पाशविक होता समाज, इसे खोता जा रहा है।

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25 APR AT 22:40

मन बच्चा था।
जीवन का सपना सच्चा था।
हाय! खिलौना टूट गया,
अपना फिर कोई रूठ गया।

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