फूल का दिन
एक महकी खुशबू
बसंत ऋतु आई।-
वक्त लिखता है सवाल जबाब
उम्र बढ़ती है बताती हाल
जिद कब-तक जवां रहे..
गुजर रहा सोलहवां साल ।-
आत्मा का न कोई समाज होता है और न ही विज्ञान।वह नदी की तरह होती है बिना किसी नियम को माने समय पर पहुंच जाती है बड़े वेग से उद्गम स्थल से लेकर सही गंतव्य तक यानी समुद्र( देह)को समर्पित तट तक। वैसे ही जैसे स्वर की तरंग पहुंचती हैं कानों तक अदृश्य, चुपचाप। प्रेम आत्मा का संगीत है।
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मौसम खुशगवार
शरद सा इज़हार मिला
प्याले आज भी तरसते रहे
हमें वो एक छुट्टी का इतवार न मिला।-
छनक छनक छनकी पायलिया।
छलक छलक छलता छलिया का प्यार।
मैं मन की मधुमति मनोहर माधव।
मय में मधुशाला सा न कर मनुहार ।
पात पात की बात बतियाते
नैनों में नैना न डार ।
झलक झलक कर झलक दिखी अब
दर दीवाला दीया सा वार ।-
हमने सिर्फ हवाओं को चाहा।
हमारे हिस्से में
मेघ मल्हार मीत संगीत आया।-
जन्मदिन की हंसी या जन्मों की खुशी कह दूं ।
तुम मेरे दिल में रहते हो, कैसे अजनबी कह दूं।
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चमकती है एक नीली नदी
पथरीली राहों को छूकर
तारों से वो कहती है
तुम मेरे होकर भी
छाया को बाहों में घेरे हो।
मैं मेरी होकर भी
तेरे रंग को अंग लगाये बैठी हूं
देख विधा खेल अनौखा
आस छिपाए इंतज़ार में
सब चुपचाप सहती हूं।
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तुम्हारे होने के अहसास मात्र से खिल जाती है कुमकुम सौभाग्य बनकर माथे पर मेरे और उस क्षण मैं महसूस करती हूं खुद को दुनिया की सबसे खूबसूरत महिलाओं की श्रेणी में सबसे ऊपर ।
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जीवन एक खोज
खोजने के इस क्रम में, कितने ही अपने रुपों से मिल चुका हूं। कभी निर्मल जल सा शीतल ,कभी धधकती ज्वाला सा अंगारा मैं, कभी जीता हर दुख से,कभी सुख से भी हारा मैं। यूं जाना पहचाना खुद से पर फिर भी अनजाना मैं।जिद की चादर कस कर ओढा़, कभी समर्पित फर्श सा लेटा अहम, यही प्रेम अब माना मैंने।
जूझा सुलझी रेशम से जब खुद को उलझा जाना मैंने।
तेरी एक पलकों की छाया में सोया स्वप्न सजीला पाया मैं ने।तू मेरा मैं तुझमें जीया। एक सत्य ये संभाला मैंने।तू है मैं या मैं तू हूं, खोज का विषय खंगाला मैंने।-