ना चाह है किसी मंजिल की न किसी सफर पर निकलना है मुझे नहीं लिखना कोई इतिहास नया ना कहानी का अंत बदलना है मुझे
मुझे नहीं बनाना कोई रास्ता अपना बने बनाये रास्तों पर चलना है मुझे अब उठ कर दौड़ने का हौसला नहीं है बस दोबारा न गिरूँ इतना ही सम्भलना है मुझे
क्योंकि मैं डरती हूँ किसी और को खो देने से किसी अपने के दोबारा दूर होने से डरती हूँ कि सफ़र में काँटो के सिवा कुछ मिलेगा नहीं जिस कल्पवृक्ष की तलाश है मुझे उस पर फूल कभी खिलेगा नहीं