क़ातिल हूँ मैं अपने ख्वाहिशों की,
कैसे कह दूँ ,
कि मैं सजा-ए-हक़दार नहीं !-
ᴡʜᴀᴛ ᴛᴏ ᴡʀɪᴛᴇ ᴀʙᴏᴜᴛ ᴏᴜʀꜱᴇʟᴠᴇꜱ,
ɪ ʜᴀᴠᴇ ʟᴏꜱᴛ ᴀ ʟᴏᴛ ɪɴ ʟɪꜰᴇ !
क़ातिल हूँ मैं अपने ख्वाहिशों की,
कैसे कह दूँ ,
कि मैं सजा-ए-हक़दार नहीं !-
वो ऐसे मिला जैसे, जन्मों से मेरा ही था,और
वो ऐसे बिछड़ा, जैसे कभी मिला ही नहीं था-
कुछ चिजे वक़्त के साथ बदल जाती हैं
और कुछ वक़्त आने पर, आखिर बदलना तो सबको है ना!-
एक हँसता हुआ चेहरा दिल में कुछ सपने,
कुछ जरूरतें, कुछ पा लेने की कोशिश
और हजारों गम हमेशा छुपाये रखता है!-
तेरे इश्क़ में तो बर्बाद होना ही था,
मैंने जो प्यार की कोई हदें नहीं रखी!-
सबके दुःख मे मैं हमेशा दुःखी हुई
अपने दुःख मे मैं हमेशा अकेली दुःखी हुई!-
शरीर के घावों पर तो हम मरहम लगा भी ले
साहिब मगर दिल के घावों का क्या करें?-
खुद की तस्वीरों में खुद को निहारती हूँ मैं
कि ऐसी तो नहीं थी,जैसी हो गई हूँ मैं !-