है कुछ तो बात इन वादियों के सन्नाटों में ,
की सोख लेती है ,अंदर के हर शोर को ,आहिस्ता आहिस्ता ।।
है परेशानियों का सबब, जीना इन पहाड़ो में ,
पर ये मुश्किलें जीत जाती हैं, शहर की आसानियों पर ,आहिस्ता आहिस्ता ।।
कुछ तो उन बर्फ़ीले रूई के फाकों का असर है ,तो कुछ इन हरियालियों की पुकार ,
की बनता जा रहा हूँ दिल से पहाड़ी, मैं भी ,आहिस्ता आहिस्ता ।।
ये तो इब्तिदा है पहाड़ों के सफर का दोस्तों ,
मिलते रहना ,छान लेंगे चप्पा चप्पा पहाड़ियों का ,आहिस्ता आहिस्ता ।।
-