तीर्थ पर जा रहे हैं........
ये अपनी गुमने की इच्छाओं को नाम दिया जा रहा हैं कि हम तीर्थ पर जा रहे हैं। अगर आप घर से पैदल निकले हैं चार धाम के लिए तो वो तीर्थ माना जाता है या अपने माता-पिता को श्रवण की तरह कंधों पर उठाकर जा रहे हो तो कहो तीर्थ पर जा रहे हैं। मौज-मस्ती करने के लिए केदारनाथ,तुंगनाथ,वर्धावन,द्वारिका और भी ऐसी जगहों पर कंधों पर बैग डालकर तीर्थ नहीं होता। मेरे पापा हमेशा कहते हैं कि कण-कण में भगवान हैं दुकान में दीपक कर दो उतना काफी हैं आपने धरती को प्रणाम किया मतलब सब देवों को प्रणाम किया क्योंकि सभी की प्रतिमा धरती से ही तो जुड़ी है अगर ये बात कोई नौ-सिखिया कहता तो नहीं मानता पर इन ड्राइवर साहब ने तो पूरा भारत भर्मन कर रखा हैं।
आखिर में इतना ही कहना चाहूंगा कि घर के मंदिर की पूजा से ही सारे तीर्थ पूर्ण हो जाते हैं तीर्थ पर जाओगे तो धर्म हो या ना हो एक-आधा पाप तो कर आओगे और जाते भी हो कही तो गुमने जा रहा हूं कहना सही होगा! भगवान के पास जाने की कोई जरूरत नहीं उसकी जब मर्जी होगी वो बुला लेगा!
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