नई आशायें नये सपने लेकर गयी है....
तू 'अपने घर' से "अपने ही घर" गयी है-
एक साहिल
एक कारवांँ
एक मंज़िल
एक मैं
एक ये दिल
है जिसकी
एक ख्वाइश
के बन जाये
किसी ... read more
क्या यही नया साल है
नहीं किसी को मालूम किसी के दिल का हाल है
क्या यही नया साल है
हर घड़ी हर जगह जिंदगी में इक नया बवाल है
क्या यही नया साल है
ज़िन्दगी में जिंदगी को ढूंढ़ते हुए अब कई सवाल हैं
क्या यही नया साल है
कुछ पाने की ख्वाहिश कुछ करने का रह गया मलाल है
क्या यही नया साल है
कुछ टूटे रिश्ते कुछ अनबने कुछ और बदतर हाल हैँ
अगर यही नया साल है
तो हम सब कमाल हैं...
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ये रास्ते ये सफर तौबा
ये मुश्किलें ये कहर तौबा
ये मंजिलों पे नजर तौबा
भटकना दर-ब -दर तौबा-
"माँ"
उसके एहसानों को मेरे सर से उतारूँ कैसे
माँ सामने है, भगवान को भी निहारुँ कैसे
वो तो कहती है कि भगवान ही सबसे ऊँचे
उसकी इस बात को भी नकारुँ कैसे
देकर के जवानी मुझे वो बूढ़ी हो चली
उसके माथे की झुर्रियों को सवारूँ कैसे
उम्र गुजरेगी कैसे ये सवाल ही क्या है
उसके बिन एक दिन भी गुजारूँ कैसे
है कोई बाबा कोई जोगी जो बता पाये ये
माँ के बिन "माँ" भी पुकारूँ कैसे ?????-
ओ ज़िन्दगी और मौत के सौदागरों
एक नई ज़िन्दगी खरीद सकते हो क्या?
हज़ारो ग़म हैं मेरी किस्मत के खजाने में
इनके बदले इक ख़ुशी खरीद सकते हो क्या?
हो सकता है तुम खरीद लो घड़ियाँ हज़ारों
अच्छे वक़्त की एक "घड़ी" खरीद सकते हो क्या?
क्या खरीद सकते हो सूरज की किरणे
और नदियों की कलकल खरीद सकते हो क्या?
ये सर्दी ये गर्मी ये बारिश ये फागुन और
बसंती हवाओं की हलचल खरीद सकते हो क्या?
आने वाले कल की तो बात ही फिज़ूल है
मेरा गुज़रा हुआ कल खरीद सकते हो क्या?
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तेरी बज़्म से जो निकाले गए
फिर न किसी महफिल से हम पाले गए
रहा बेदिली का दौर कुछ इस कदर
खोटे सिक्कों की तरह उछाले गए
तेरे हिस्से में आयी होंगी रौशनी उम्र भर
मेरी तो जिंदगी से सब उजाले गए
अब तो बस दो गज की ज़मीं है ठिकाना अपना
क्या गिला कि कहाँ कहाँ से निकाले गए
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आशाओं की लौ हो
खुशियों की थाली हो
सुख के दीपक हों
समृद्धि की दीवाली हो
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कैसे बताऊँ के होश में भी नहीं होता हुँ
मैं जब नशे में नहीं होता हुँ
तेरे बगैर जीने का अंदाजा नहीं है मुझे
तेरे बगैर मैं भी मैं नहीं होता हुँ
ये रूठना मनाना होगी आदत तेरी
मैं तो खफा गुनाहों पे भी नहीं होता हूँ
तू मुझे छोड़े या अपनाये ये मर्ज़ी तेरी
हाँ मगर वादा खिलाफी में मैं नहीं होता हुँ
सब जानते हैं और तू भी ये जानती है
और तो हो जाते हैं बेवफा मैं नहीं होता हुँ-
कुछ छूट गया है वो सामान ले आना
अच्छा सुनो गाँव वाला मकान ले आना
भूल ना जाना लौटते वक़्त ध्यान से
गाँव की चौपाल से मेरा सम्मान ले आना
हो सके तो ले आना वो टूटी हुई चारपाई
और बन सके तो खेतों का मचान ले आना
ले आना आसपड़ोस से दादी की कहानियाँ
वहीँ आसपास खोई मेरी मुस्कान ले आना
पेड़ लाना खेत लाना और लाना कुंए का मीठा पानी
और मेरी दबी हुई ख्वाहिशों से कुछ अरमान ले आना
यहाँ तो ज़िन्दगी के हर पड़ाव में है मुश्किल
गाँव की ज़िन्दगी से कुछ आसान ले आना
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ज़माने को अपना बनाकर भी हम तनहा रहे
ज़माने ने जब हमें अपनाया तो हम कहाँ रहे
मुझे नसीब हो वो मिट्टी जो मेरे गाँव की हो
मेरा ज़नाज़ा वहीँ निकले मेरा सनम जहाँ रहे
किताबों के पन्नों में दबे जो रहते थे शान से
गुलिस्ताँ में अब वो गुलाब जानम कहाँ रहे
हम तो निकल आये थे पहले ही बहुत दूर
हमारी उल्फत के दौर में मगर तुम कहाँ रहे
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