तुम्हें याद है क्या?
वो रात भर प्यारे गीत गुनगुनाना
रात भर चाँद तारों को निहारना
सपनों की दुनिया में पूरी ज़िंदगी बसाना
वो रिमझिम बारिश में जम कर नहाना |
तुम्हें याद है क्या?
वो सूर्य की पहली किरण देख उठ जाना
तुम्हें याद है क्या ?
वो जो चंद पैसे थे मेरे पास
उनको सिर्फ तुम्हारे लिए बचाना
हर एक समय जो बिताया साथ तुम्हारे
दिल में उन्हें पल पल सजाना
जो हो मुश्किलों से भरे अनगिनत पल
साथ आपका दिन रात निभाना
तुम्हे याद है क्या??
जाने अंजाने मे जो रूठ गए आप
बडे़ प्यार से मनाना
दिल की हर एक ख्वाहिशों में
तुम्हें रानी बनाना
तुम्हें याद है क्या??
जो तुमने रखी उंगली, चाहिए कुछ भी तुम्हे
छोड़ सारी फिक्र जहाँ की, तुम्हें झट से दिलाना
तुम्हें याद है क्या??-
कह तो दूँ, है कहने को बहुत कुछ,
पर तुम ही बताओ, उसे कहुँ कैसे,
है दफ़न जो दिल में अनकहे जज़्बात
उन्हे लब्जों में बयाँ करूँ मै कैसे!
यूँ मन तो है इज़्तिरार कबसे,
इसके संग रहुँ मैं कैसे!
इन बेचैन आँखों में नींद, कुछ शेष बची नहीं,
जो संजोय है चंद स्वपन, उनके संग जगु मैं कैसे!
ये दूरियाँ-दरमियाँ न हो रही है कम,
यह विरह वेदना सहूँ मैं कैसे!
कह तो दूँ, है कहने को बहुत कुछ,
पर तुम ही बताओ, उसे कहुँ कैसे,
है दफ़न जो दिल में अनकहे जज़्बात
उन्हे लब्जों में बयाँ करूँ मै कैसे!-
है जोश भरा जिस तन-मन में,
वहाँ भोर रहे या रात रहे |
पृथ्वी की अंतिम छोर सही,
जयकार रहे जयकार रहे |-
उंगली पकड़,हमें चलना सिखाया
जो थक गये हम, कंधे पर बैठाया।
नज़रअंदाज कर अपनी सारी जरूरतें
नित नए खिलौने-कपड़े दिलवाया।
त्याग कर अपने सपने पूरे
हमारे ख्वाबों को पंख लगाया।
परेशानियों का पहाड़ गर टूटा
झेला सब हंस कर, न कभी जताया-
बादलों को भेदती,
चंद सुनहरी रवि किरन..
लालिमा बिखेर कर,
किया अलंकृत पृथ्वी गगन..-
माना कि ज़िन्दगी, थोड़ी कम है
ख़्वाब ज़्यादा, बाकी वहम है..
खुशियां हैं बेशुमार, औरों से
दर्द भी है बेहिसाब, आंखें नम है..-
मज़दूर हूं
शान-ओ-शौकत से कोसों दूर हूं
परवाह नहीं है धूप छांव की
बस दो रोटी को मजबूर हूं-
ऐ भारत के नौजवान
करता हूं तेरा आह्वान
तेरे ही उत्कट प्रयत्नों से
हमको मिली है नई जान
ऐ भारत के नौजवान ।।
इस नवपल्लवित जोश से
विष को कर दे तू वरदान
अपने श्रम के बलबूते से
भारत का कर दे उत्थान
ऐ भारत के नौजवान ।।
रामराज्य स्थापित कर दे
कर दे देश का कल्याण
अपने शक्ति के संचार से
कर नए भारत का निर्माण
ऐ भारत के नौजवान ।।
अपने प्रचुर विवेक से
पूरे कर हर अरमान
एकता की दे कर मिसाल
संभालो भारत की कमान
ऐ भारत के नौजवान ।।-
है मौत का तांडव, खुलेआम चल रहा
दहशत ए मंज़र, चारों ओर फैल रहा
हर सांस के लिए वह, मोहताज खड़ा रहा
बिचौलियों का बाज़ार, दिन भर सजा रहा
उम्मीदें टूटती रहीं, पैसों का खेल लगा
दम तोड़ ज़मीं पर, इंसानियत पड़ा रहा
भटक रहें है भेड़िए, इंसान के ख़ाल में
जिंदा नोचने को देखो, गिद्ध मंडरा रहा
मज़बूर ममता सिसक रही, है अस्पताल में
जद्दोजहद है मौत से, वह भी अड़ा रहा
सरकार की है खामियां, जो जिम्मेदार थी
था जिम्मेदार नागरिक, वह भी पड़ा रहा
है मौत का तांडव, खुलेआम चल रहा
दहशत ए मंज़र, चारों ओर फैल रहा-
निर्भीक तू बढ़ा कदम,
उम्मीद नहीं छोड़ना..
चल अविरल अपने पथ पर,
तू रुख़ न अपना मोड़ना..
हो कितनी भी कठिन डगर,
साहस का दामन न छोड़ना..
जो मुश्किलों का पर्वत अडिग,
गुरुर उसका तोड़ना..
मिलेगी मंज़िल बेशक तुझे
हो मायूस हाथ न जोड़ना..
निर्भीक तू बढ़ा कदम,
उम्मीद नहीं छोड़ना..-