जहां किसी को किसी की कोई जरूरत ना हो।
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लिखता हूं, जो हालात और मन एहसास कराए... read more
वो बातें जो होती है अक्सर,
अंधेरों में खुद से।
सरकती है चादर,
जब ख्वाहिशों के सर से।
जो बैठे थे ओढ़ कर,
तमीज का लिबास अब तक।
खींचती है, तुम्हारी खाली आंखें,
मेरे अंदर के कमज़ोर लम्हों को,
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तू पलट कर आ तो सही कि खटकता मुझे, तेरा यूं बिन कहे चले जाना। की कही खड़ी ना हो जाए दरमियान हमारे, ये रात की खामोश सर्द दीवारें। कही चिराग़ बुझ न जाए दिल ए उम्मीद का, उस से पहले तू आ तो सही।
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जो गुरूर था, तुम्हें अज़ीज़ होने का, वो यहां काम न आएगा। वो हुनर फ़कत मेरा है, तुम्हारे काम कहां आएगा?
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एक ठहराव,भी ज़रूरी है।
अगर ज़रूरी है चंद फासले
तो खुद लिए,
कुछ फैसले भी ज़रूरी है
धूप-छांव तो किनारे है।
इस जिंदगी के पड़ाव में,
मंज़िल मिले या न मिले।
मगर अपनी गूंज सुन पाना,
बहुत ज़रूरी है।
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जब मौत अपनी हर नायब चाल से ऊब चुका होगा।
जो ज़िन्दगी से हाथ मिलाकर, मेरे खातिर हर दरवाज़े को बंद कर चुका होगा।
जब उसे लग रहा होगा, की उसकी हसी मेरे अस्तित्व को कर सकती है, नास्तेनाबूद।
मैं तब भी मौत की आंखों में आंखें डाल कर, एक आखिरी जंग के लिए हमेशा तैयार मिलूंगा।
For jon snow. (G.O.T)
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कि बड़ी देर कर दी,
ज़हन से जुबां तक लाने में।
खामोशियों को सुलझाने में।
दिल की बयां कर पाने में।
बड़ी देर कर दी।
और इसी जुर्म की सज़ा,
ताउम्र मिली।
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ना कोई दोस्त ना ही दुश्मन ना उम्र का कोई वास्ता।
मंजिल एक ही है, मगर जुदा जुदा है रास्ता।-