कुछ मिज़ाज बदला-बदला सा लगता है,
अब होती नहीं पहले जैसी बातें,
चुप कर तकते रहते हैं,
नज़र मिलती है तो छुप जाते हैं किनारे,
ख़्वाब ही महंगे निकले शायद,
शायद उम्मीदों पे लगाम नहीं लगाई,
अब इसी कश्मकश में रहते हैं बस,
जाने किस घड़ी ये दिल्लगी से होगी जुदाई।
-Sandeep Joshi-
writing it down on paper has brought". ✍
Instagr... read more
इस गुमनामी में इतना शोर क्यों है,
सांझ के आगे नही भोर क्यों है,
ये अंधेरा इतना घनघोर क्यों है।
सब हो कर भी नही पूरा हूँ मैं,
मेरी सोच पे जैसे ताला बस मजबूर हूँ मैं।
कुछ सोच नहीं अब पाता हूँ,
बातें अधूरी छोड़ जाता हूँ,
जीत की बात अब कर नहीं पाता हूँ,
ख़ुद का ही हिसाब नहीं लगा पाता हूँ।
उठ खड़ा हो, चलता जाऊ कोई तो मंज़िल होगी,
भला ये भी किसने कहा है की ज़िंदगी आसान ही होगी,
क्या पता रास्ते में इस बेचैनी का उपाय ही मिल जाए,
नहीं तो ऐसे ही चलते-चलते यूं ही एक नगमा बन जाए।
-Sandeep Joshi-
your boss approves your leave for 1st Jan
but then you remember
you don't have any money
and salary is delayed due to Bank holiday...
-Sandeep Joshi-
बातें मुझसे बन नहीं पाती,
बन भी जाये तो बोली नहीं जाती,
मेरी मोहब्बत पर उसे ऐतबार नहीं जाने क्यों,
सीने पर रख के सर वो सुने तो शायद समझे,
एक शायरी बेवजह लिखी नहीं जाती।
-Sandeep Joshi-
आँखों में नींद भरी पर दिल में बेचैनी है,
शायद इस सर को माँ की गोद की कमी है।
-Sandeep Joshi-
अपने बच्चों को पहले ही बोल दूंगा कि साल 2120
में अपनी दारु का स्टॉक पहले ही भर कर रख लेना।
-Josi ji-
Work from home के चक्कर में कभी-कभी डर लगता है
की बाद में कही office कच्छे में ही ना चाला जाऊँ। 😅
-Josi ji-
Kuch sujhta he nhi ab is kalam ko meri
Kore he rehte ye kagaz ab
Sochta hu ki kya sochu bhala likhne ko,
misaal ke liye nhi sujhta koi ehsas ab.
Jaane esa bhi kya shauk laga hai akelepan ka,
Na kisi se khushi ki umeed bachi hai,
Na he ghum milne ka ab.
-Sandeep Joshi-