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Sandeep Jay Mishra
(©संदीप जय मिश्रा)
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एक अधूरा शक़्स मुक़म्मल शख्शियत
Joined 15 March 2018
26 JUL 2022 AT 1:53
रख लो मेरा एक हिस्सा क़रीब अपने,
मैं मंज़िल की तरफ़ चल पड़ा हूँ।-
11 JUL 2022 AT 1:17
तेरा इंतज़ार, ख़्याल और इक वादा लिखा है
महफूज़ किताबों के आख़िरी पन्नों में।
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8 JUL 2022 AT 6:27
मुक़म्मल होती जो मोहब्बत मज़ारों में बंधे धागों से,
इस दुनिया मे कोई बेवफ़ा न होता।-
4 DEC 2021 AT 19:30
मुस्कुरा के विदा करिये हर किसी शक़्स को हर दफ़ा,
न जाने कब विदा "अल-विदा" में तब्दील हो बैठे।-
22 OCT 2021 AT 0:09
संभलकर चलना होता है दरिया ए ज़िन्दगी में साहिब,
यहां साहिल हर किसी को हासिल नही होता।-
19 OCT 2021 AT 22:33
रुख़सत हो गया वो शक़्स रंग हिना का बिखरने के बाद,
बुला लो मेरे यारों को क़फ़न के साथ।-
13 OCT 2021 AT 2:47
गर काफी होती मोहब्बत ज़िन्दगी साथ गुज़ारने में,
इतनी बिखरी कलमें न होती ज़माने में।-