ना जाने तुमसे कितनी बार क़ी कई बार मीन्नते हजार,पर तुमने हमे सुना कहा। फिर भी चलता हूँ तुम्हारे दिए गए रास्ते पे बस गिला हैँ के हमे मिलती नहीं ईमान और सच्चाई की बाते कहा।
यह समाज हि है,हम्हें उठ जाने से मना करता हैँ।और यदि हम बैठ भी जाते हैँ, तो,हम्हे बैठ जाने से मना करता हैँ। मत सोचो समाज क्या कहेंगा बल्कि यह सोचो तुम्हारा मन क्या कहता हैँ।