sandeep dhakad Tinsyai   (Sandeep dhakad)
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Joined 17 August 2018


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Joined 17 August 2018
21 AUG 2018 AT 10:13

प्रेम प्रेम सब कोई कहे, प्रेम न जाने कोई
जो जाने हरी प्रेम को, जग प्रेम को न रोए।
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प्रेम था मीरा का जो, जग से मोह मिटाय
हरी बिन जो न जी सके, साँचो प्रेम कहाय।
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प्रेम कोहु भाषा नहीं, जो मुख सों बोली जाय
जो समझे मन प्रेम को, सो ही राधा कहाय।
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प्रेम तन का रोग नहीं, प्रेम है दिल का मेल
साँचो प्रेम प्रभु मिलन, बांकी सब जग को मैल।

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27 NOV 2021 AT 7:32

बेहद खूबसूरत हो जनाब
कहीं हमारी नज़र न लग जाए।
नजरें जरा झुका कर चला कीजिये
कहीं कोई इनका आशिक न हो जाए।।

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27 AUG 2021 AT 21:46

इशारों ही इशारों मे भी बहुत कुछ समझने लगे हो
लगता है आप भी मोहब्बत के नशे मे रहने लगे हो।

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7 AUG 2021 AT 22:06

पिता के होने से पहले क्या थे हम
न कोई चिंता न किसी वात का गम।

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17 JUL 2021 AT 10:25

काश ये जिंदगी भी उस चौक की तरह होती
कुछ गलत लिखी हो जाने पर साफ़ हो जाती

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20 JUN 2021 AT 12:13

है आपके पास जो आम बात लगती है
किस्मत ये आपकी बहुत खास लगती है
जिक्र खुदा का करो या अपने पिता का
दोनो मे एक ही तस्वीर नजर आती है

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13 MAY 2021 AT 17:58

किससे कहें की हम लुट गए
यहाँ हर साया तो उजड़ा हुआ है।।
पोंछते थे आँसू जिसके कंधे पर हम
आज वो भी दो गज दूरी पर खडा है।।

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12 MAY 2021 AT 17:58

नज़रें झुकाने भर से क्या होगा यहाँ
सव कुछ तो आईने ने कैद कर लिया है।।
भागते रहो तुम हमसे कितना भी दूर
हमने तो हबाओं मे जहर घोल दिया है।।

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12 MAY 2021 AT 17:42

हर वक्त सुख को चाहने वाले
दुख की नाव पर बैठकर चल रहे हैं
कुछ तो कातिल हैं जनाव यहाँ
यूँही नही हम हर वक्त मर रहे हैं

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12 MAY 2021 AT 17:26

पैसा नहीं मिला हमे तो गाँव छोड़ आए
गाँव की गलियों से हम मुह मोड़ आए ।।
खोज थी सुकून और आराम की जिन्हे
साँसों के लिए अपनी पहचान छोड़ आए।।

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