Sandeep   (परिंदा)
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Joined 6 July 2021


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13 JUL 2022 AT 13:47

रात जैसे जता  रहा हो
थके हो बहूत तुम
दिन भर
अब आराम कर लो
बस यही बता रहा हूं

जिम्मेदारियां बन
जब सुबह ने जगाया तुम्हे
और सूरज ने चढ़ के
दिन भर दौड़ाया तुम्हे

हिसाब लगा रहा
ढलते शाम में
कितने दिन ,सांझ किए
जिंदगी के ढलान में

अब मिलता नही कुछ यहां
आठ आने
महंगा हुआ हर पल
बस दोस्त मिल
जाएं किसी बहाने

पुचकार रहा चांद मुझे
चंद ख्वाब सहेज रखे हैं
बस तू एक तकिया रख सिरहाने

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7 APR 2022 AT 18:41

लाइफ टेंशनो का पुलिंदा है
जो लड़ गया वही
अब जिंदा है

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3 FEB 2022 AT 0:39

दिल के जज्बातों के
शब्द चुन रहा हूं
तुम मुझे यूं ही पढ़ते रहो
मैं नये ख्वाब बुन रहा हूं

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17 OCT 2021 AT 18:00

सफलता की दौड़ में

मेरा गांव कहीं खो गया है

बेजान हो रहे रिश्ते यहां

अब ये शहर हो गया है

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27 SEP 2021 AT 3:26

लिखे जाते हैं
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सफर खत्म होता नही यहां
और बस हम चले जाते हैं

दिमाग में जो मचा है शोर
कब तक शांत रखें खुद को

तुम पढ़ने जो बैठे हो
इसलिए हम लिखे जाते हैं
और लिखे जाते हैं.......

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1 SEP 2021 AT 17:16

कैसी लकीरें उसने भरी हैं
कहीं हल्की
तो कहीं गहरी

कुछ अनंत तक
साथ चल रही
तो कुछ बीच में ही

तुम्हारे इंतजार में ठहरी हैं

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31 AUG 2021 AT 23:29

जो तुमने छुपाया था
कमी सबमें होती है
ये दिखाने उसने खुद को
दागों से सजाया था

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28 AUG 2021 AT 13:34

आत्म संतुष्टि

लिखता हूं मैं यहीं
चाहे पढ़े कोई नही

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26 AUG 2021 AT 17:10

पूर्णता की प्यास
बदलता चांद ओढ़ते लिबास

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24 AUG 2021 AT 17:14

आरंभ की अंत से मोहब्बत

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