कुछ खता तो मेरी भी होगी, तभी तो दिल का बंधन टूटा है, कुछ इश्क़ वफ़ा की समझ ना थी, तभी तो हाथ यूं छूटा है , बैचेन दिल की अब हालत ऐसी, हजारों मन की बातें करनी थी, क्या करे अब , खफ़ा है खुद से, अब क़िस्त रुसवाई की भरनी थी , बेख़बर है वो क्या जाने, हाल मेरा अब क्या होगा , जो खुली आंखों से देखे थे, हर वो ख़्वाब तबाह होगा !
तोड़ के मैंने, दिल को अपने, दर्द में रहना सीख लिया, छोड़ के मैंने,अपने सुकूं को, दर्द में बहना सीख लिया , खुशियों का अब आलम कैसा, जब तन्हाई में रहना है, मोड़ के मैंने, राहों को अपने , दर्द को सहना सीख लिया ! दर्द ही अब दर्द का मरहम, रुसवा अब क्या तुझसे रहना, जोड़ के बिखरे मैंने, ख्वाब को अपने, दर्द में कहना सीख लिया !