Sanchita Singh   (Sanchita Singh)
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Joined 1 April 2020


Joined 1 April 2020
7 APR AT 22:12

लोग करते हैं बात खुले में सैर की,
खुली खिड़की से ही बस मैंने आसमान देखा है।
सुनते हैं बात बड़े-बड़े शहरों की,
दो चार घरों में ही मैंने जहान देखा है।
लौट आते लगाके बाज़ी परिंदों से,
अफ़सोस.. दरीचे से ही आज तक महताब देखा है...

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22 JAN AT 19:12

प्राणों की प्राण प्रतिष्ठा हुई है,
हर उर की पूर्ण प्रतीक्षा हुई है।
कोटि जन उल्लास में हर्षित हैं,
चर अचर आज सब पुलकित हैं।
रोम रोम रम गए राम,रघुनंदन का अभिनंदन है
सात्विकता, सकारात्मकता का हर हिय में आज स्पंदन है...

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18 JAN AT 21:40

दिखाते नहीं अक्स आईने हमेशा,
शब्दों से मिलकर भी कई तस्वीर बनती है....

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24 AUG 2023 AT 18:22

रख के गिरवी संस्कारों को, सम्बन्धों का व्यापार करते हैं।
नकद चाहिए मूल्य उन्हें उनके जज़्बातों का,
और औरों से यूँ ही उधार करते हैं...

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9 AUG 2023 AT 21:56

न जाने क्या हुई है गुफ्तग़ू जमीं की आसमां से...
बादल छंटते नहीं, बूंदे गिरती नहीं...

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10 JUL 2023 AT 8:47

कहाँ,
कब उलझते हैं हम अपने विचारों में?
हमारे द्वन्द्व तो होते हैं अपने और औरों के विचारों से,
जहाँ चाहते हैं हम दूसरों को गलत सिद्ध करना,
पर अनमने ढंग से थमा देते हैं बाजी दूसरों को
एक अनकही बात और
'शायद' कभी खत्म होनें वाले इन्तजार
के साथ हो जाते हैं मौन
कर दिए जाते हैं स्थगित शब्दों के बाण
क्योंकि होती है प्रतीक्षा
एक वक्त बाद...
वक्त स्वयं देगा जवाब..

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9 JUN 2023 AT 19:19

प्रसन्न, मुदित हो स्वस्थ रहो,
तिरोभाव हों सारी व्याधाएं।
भाव अभाव का मिटे भेद,
बधाई, जन्म की तुमको विशेष।

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23 MAY 2023 AT 19:29

ऐ जिंदगी तू एक एहसान कर,
एक जरा सा मेरा काम कर,
लगाए बैठे हैं हम बाज़ार सवालों का,
तू परचून की सी सही एक दुकान तो कर...

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10 APR 2023 AT 6:30

पत्थर के एवज़ में हीरों को तौलते हैं,
तस़व्वुर फ़कीर के वो शायद नहीं समझते हैं..

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6 APR 2023 AT 17:34

आशाएं, निराशाएं यूं हंस के सब से मिलना
आशां कहाँ है जिंदगी तेरे साथ साथ चलना...

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