यूं आसां नहीं हैं रंजिशें आफताब से करना,
लाख बूंदे समेटी हैं,तो जाकर अब्र बन पाए....
-
क्योंकि बहुत कुछ गलत होगा,
सब कुछ सही होने से पहले....
कभी फुरसत में सुनाएंगे दास्तान- ए- तसव्वुर,
अभी हकीकत के फसानों से जरा रूबरू होने दो...-
तू लगा आग जला दे, जो आएं घर तेरी जद में,
हम अपने हिस्से के कतरों से कुछ आशियां बचा लेंगे...-
नींदों में मिले शुकून जिन्हें वो लोग और हैं,
ज़रा फ़ुर्सत से भी बैठें तो यहां बेचैन हो जाते हैं...-
प्रेरणारूपी तेल,
सकारात्मकता रूपी बाती,
दृढ़ विश्वास रूपी लौ......
आशाओं का एक अदना सा दीप नहीं तो और आखिर हूँ कौन मैं ??-
लो खत्म कर दी मैंने सारी उम्मीदियां तुझसे,
ये नाउम्मदगी का मंजर तुझे रास आए तो कहना....-
तू बस हालात देख मेरे,हौसलों की न बात कर,
मैंने किश्तों में होते खुद को बरबाद देखा है..-
इसी उम्मीद में कि इक दिन तूफां सा उठेंगे,
कतरा कतरा हर रोज बिखरते ही जा रहे..-
देखे कई हकीम बहुत इलाज़ कर लिया,
अब उकता के हमनें यूं किया कि मर्ज़ बदल लिया..-
तेरी खुशबू और तेरे नूर से आती है दीवाली,
लो जला के दिए मैंने फिर,
बस त्यौहार मनाया..-