"रहने दिए तरकश में ही वो तीर जो वचनबद्ध थे, रणभूमि में कर्ण को पांडवों से भिड़ने के मौके मिले बहुत थे.. कि शायद अपनी बातों का मोल तब रहा होगा उस युग में, अधर्म की ओर से लड़ने वाले भी जब धर्म से युद्ध करते थे..."
"इन उधार की साँसें पर क्यों एहसासों का कर्ज़ चढ़ाना.. ना किसी से वादा, ना शिक़ायत, ना ख़्वाहिश.. भरते नहीं ज़ख्म दिल के उम्रभर, फिर क्यों दिल लगाना..."— % &