सूक्ष्म शरीरस्य सप्तदश: कला किम्?
दशेंद्रिय पंच प्राणा: मन:बुद्धि: सह, इति /
सूक्ष्म शरीर की सत्रह कला क्या है ?
पांच ज्ञानेंद्रीय पांच कर्मेंद्रीय पांच प्राण मन और बुद्धि ।।।
श्रोत्र त्वचा नेत्र रसना घ्राण ये पांच ज्ञान इंद्रिय
वाणी हाथ चरण गुदा लिंग ये पांच कर्म इंद्रिय
प्राण अपान व्यान उदान समान पांच प्राण है
मन और बुद्धि ।।-
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तत्त्व बोध
सूक्ष्म शरीरं किम्?
अपंचीकृत पंच महाभूतै: कृतं सप्तदश कलाभि: सह यतिष्ठित ।।।
सूक्ष्म शरीर क्या है?
अपंचीकरण, व पांच महाभूतो उत्तम कर्म से उत्पन्न सुख दुख भोगों का साधन सत्रह कलाओं से युक्त जो है वही सूक्ष्म शरीर है ।।-
तत्त्व बोध
स्थूल शरीरं किम्?
पंचमहाभूतं आवेष्टित सत्कर्म:उत्पन्नं शरीर रूपं
सुख: दु:खादी भोगं आयतन अस्ति।
स्थूल शरीर क्या है ?
पंचमहाभूतो से बना सत्कर्म से मिला हुआ सुख और दुखादी भोगों का घर और जो नाशवान हैं
क्रम से बढ़ना घटना वाला है अंत अवस्था में नाश होना है ऐसा छः विकार वाला ये स्थूल शरीर है-
तत्त्वबोध
*आत्मा क:?
–स्थूल सूक्ष्म कारण शरीराद्व्यतिरिक्त:
पंचकोशातीत: अवस्था त्रय साक्षी सचिदानंद स्वरूप: सन् यस्तिष्ठति स आत्मा ।।
*आत्मा क्या है ?
–तीन प्रकार के शरीरों से भिन्न, पंचकोशो से परे,जाग्रत स्वप्न सुषुप्त अवस्था का जो साक्षी है सत चित आनंद स्वरूप जो दिखता है ।।
वही आत्मा है ।।।-
तत्त्व बोध
*तत्व विवेक: क: ?
—आत्मा सत्यस्तदन्यत सर्वं मिथ्येति।।
*तत्त्व विवेक क्या है ?
—आत्मा ( ईश्वर,जीव) सत्य है इससे अन्य जो नाम रूपात्मक जो दृश्यमान जगत है वो मिथ्या है इस निश्चय को तत्त्व विवेक कहते है-
तत्त्व बोध
मुमुक्षत्व किम्?
मोक्षो मे भूयादितीच्छा।।
मुमुक्षत्व क्या है ?
संसार के दुखो से मेरी निवृत्ति हो ये इच्छा मुमुक्षत्व है ।।। ओर ये सभी चार साधन है-
तत्त्व बोध
#श्रद्धा कीदृशी? *समाधानं किम्?
—गुरु वेदांत वाक्यादिषु विश्वास: श्रद्धा ।।
– चित्त एकाग्रता समाधान ।।
#श्रद्धा किस प्रकार की होती है ?
_स्व गुरु और वेदांत शास्त्र आदि के जो वाक्य है उनमें स्वयं का विश्वास यथार्थ बुद्धि ही श्रद्धा है
#समाधान क्या हैं?
चित्त की एकाग्रता से गुरु और वेदांत के वाक्य को एकांत में विचारना और किसी अधिकारी को उपदेश समाधान है ।-
तत्त्व बोध
*उपरम क: ? तितिक्षा का ?
_स्वधर्म अनुष्ठान सेव ।
—शीतोष्ण सुखदु:खादीसहिष्णुत्वं।।
*उपरम क्याहै ? तितिक्षा क्या है ?
—अपने धर्म में तत्पर हो चित्त को सम्पूर्ण विषयो से निवृत करना उपरम है
—अपने प्रकृति के प्रतिकूल भी प्राप्त हुई अवस्था में भी निर्विकार रहना और उसमे भी अनुकूलता मानना ही तितिक्षा है।।-
तत्त्वबोध
शम: क: ? दम: क:?
मनो निग्रह:/ चक्षु: आदि बाह्यइंद्रियनिग्रह:/
शम और दम क्या हैं?
मन को वशीभूत करना शम है
नेत्रादि बाह्य इंद्रिय को वशीभूत करना दम है
स्वयं के मन इंद्रिय पर स्व की उचित लगाम-
तत्त्व बोध
ॐ शमादि साधन संपत्ति: का ?
–शमोदम उपरमस्तितिक्षा श्रद्धा समाधानं चेति।
शम आदि छः साधन कौनसे है क्या है ?
–शम दम उपरम(विरक्ति) तितिक्षा श्रद्धा समाधान ये छः मोक्ष के हेतु साधन संपत्ति है ।।
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