𝙎𝙖𝙢𝙧𝙖𝙩 𝙍𝙖𝙟𝙥𝙪𝙩   (samrat rajput)
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A start always achieve an end...✍️
An end always bear a new start✍️
Joined 25 October 2019


A start always achieve an end...✍️
An end always bear a new start✍️
Joined 25 October 2019

ख़्वाब जो कम पड़ने लगे तुझे देखने के लिए
हम भी नींदों से लड़ने लगे तुझे देखने के लिए........!

जानते हैं अब तू कभी हमारा नहीं होगा
इसलिए हम भी लिखने लगे तुझे देखने के लिए......!

घर से निकल आया हूं घर छोड़कर
कहीं घर भी ना ज़िद करने लगे तुझे देखने के लिए..!

दिन भर की थकान से चूर था
फिर भी पैर चलने लगे तुझे देखने के लिए.............!

कभी जो तुझे पाने की दुआ करते थे
वही हाथ दुआ पढ़ने लगे तुझे देखने के लिए..........!

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ज़मीं पर गिरा तो उसी का हो गया
मैं ख़ुद को छोड़कर हर किसी का हो गया.......!
कभी रास नहीं आया मुझे आइना मेरा
जहां दिखी तेरी सूरत उसी का हो गया...........!

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मोहब्बत की जम्हूरियत में दस्तूर हो गया है
कोई गिरा और कोई चकना चूर हो गया है...............!

के अभी तो जवानी का बचपना है तुम में
और अभी से जवानी का फितूर हो गया है...............!

हम ने तो गले से लगाया था गुल को
मिरे दामन का कांँटा युंँ हि मशहूर हो गया है.............!

हर किसी से होता है मुस्कुरा कर रूबरू
मेरा दर्द भी कितना मजबूर हो गया है....................!

पांँव आज भी खड़े हैं इजाज़त पाने को मगर
तेरा रास्ता बहोत मगरूर हो गया है.......................!

कोई शिकायत नही थी उनको जो मदहोश थे
होश में आए तो गिला हमसे जरूर हो गया है...........!

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दिखने लगा हूंँ सब को किसी मेअा'र की तरहा
कभी मोहब्बत कभी तड़प कभी इंतज़ार की तरहा.....!

सब चले गए ख़रीद कर मंज़िलें अपनी अपनी
मैं खड़ा हूंँ अब भी वहीं फ़क़त बाज़ार की तरहा........!

पढ़कर भी नहीं समझ पाते लोग मुझ को
कोई तो गया है लिख मुझे अश'आर की तरहा..........!

दवा आज भी वही है मेरे हर मर्ज़ की
दिल में आज भी दख़ल है उसका हक़दार की तरहा...!

शक़ हुआ तो था ज़माने पे थोड़ा थोड़ा
हम ही कहां समझे इशारा समझदार की तरहा..........!

अब ले चल, जिधर तेरा मन करे मांझी
बहुत भटका है "सम्राट" तिरी पतवार की तरहा........!

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मेरी अब जगह ना पूछिए
मैं क्यों हूं वजह ना पूछिए.....................!

जगह जगह से सुनकर आया हूं
अब इस आलम की जगह ना पूछिए.......!

किस कदर सब समेटा है
इक वियोगी से विरह ना पूछिए..............!

समुंदर को पीकर आए हैं
खारे पानी की खरए ना पूछिए................!

नाराज़ तो हम अब तक हैं
तेरी यादों के सामने विनय ना पूछिए........!

अब सारी दुनिया अपनी है
अब ख़ुद पर मेरी विजय ना पूछिए..........!

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मिलता नहीं हर दफा कोई किसी को
मिली उसे जो ये दौलत, मुब़ारक उसी को............!


किसे ग़म है और किसे ख़ुशी है
तन्हा कभी आइने में देखना अपनी हंँसी को.........!


ना कोई ज़ोर ना जबरस्ती की गुलाब ने
टूटा फिर भी हर बार हासिल हुआ ज़मीं को.........!


तहरीरें बहुत सी लिखी जा सकती थीं
उठाया जब भी हर्फ सुपुर्द ऐ ख़ाक था नमी को.....!


नज़रें अब झुका कर चलता हूंँ
अक्सर लग जाती है मिरी नज़र, मुझी को...........!

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कुछ कहा नहीं दरिया से तूफ़ान ने
क्या क्या सिखा दिया मुश्किल को आसान ने....!

हर कोई पड़ा है सूरज के पीछे
चांद छीन लिया, ख़्वाबों के आ'समान ने...........!

गुलाब, किताब, शराब सब झूठे हैं
पा लिया सारा जहां, पाकर ख़ुद को इंसान ने....!

ये तो जानी पहचानी सी इबारत है
ज़ख़्म अपनों ने दिए मरहम अंजान ने...............!

जुस्तजू होगी तो सही किसी की कभी
यूंँही नहीं सब मिटा दिया बेजान ने...................!

गुलाब, किताब, शराब सब झूठे हैं
पा लिया सारा जहां, पाकर ख़ुद को इंसान ने.......!

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इक हम ही नहीं बदले वक़्त के साथ साथ
नज़र,खिड़की,रास्ता सब बदल गया उसके साथ साथ....!

वो सच थी बातें या बातों की महफ़िल थी
पुकारे जो रिश्तों का खंडहर,ले जाना'इक पुरानी बात साथ!

कोई सुराग नहीं मिलता अब उसकी गली का
शायद' दे रहा था पहले, कोई इत्तेफ़ाक़ साथ................!

सुबह, दोपहर, शाम ख़ुद को छुपाए रखते हैं
कोई' बहाना नहीं बचता, होती है जब सिर्फ रात साथ.....!

धूप आने नहीं देती इक यादों की दिवार
गर गुज़रो यहांँ से, लेकर आना' आफ़ताब साथ.............!

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ज़रूरी नहीं हर एक दर्द बांटा जाए
कुछ आग भी दिल में बाकी होनी चाहिए..!

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हमारे दर्मियां, बस रह गया, यही रिश्ता ग़ज़ल बाकी
कभी तू याद कर लेना, कभी मैं याद कर लूंगा........!

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