जब अपनी बात कहती हूँ
ये जानते हो क्या
सिलसिला कब शुरू हुआ पता नहीं
लेकिन चलेगा जब तक मैं हूँ.....
जानते हो ...
एक अहसास है जो
मेरा सबसे करीब है, सबसे अज़ीज़ है
ये सिर्फ़ अहसास है निराकार
उस अहसास का आकार रूप
वो जो कभी था ही नहीं ...-
chemical lochha seriously 😊(IIT)
खड़गपुर कोलकाता=... read more
में सिक्का नहीं हूँ,
जो जेब से गिर कर,
एक बार खनक
कर रह जाऊंगा ...
में वह नन्हा-सा बीज हूँ
जो जमीन पर गिरा,
तो एक दिन बड़ा पेड़ बन कर,
तुम्हारी ज़िन्दगी को
चिलचिलाती हुई धुप से बचा कर,
अपनी छाव में बेठऊंगा
में दोस्ती का वह बीज हूँ ...
जो एक बार फल गया तो
शायद.....
हर रिश्ते में जी कर दीखाऊंगा-
कुछ कुछ
मेरे जीवन में
पूर्ण विराम थे
आधे अधूरे वाक्य
और प्रश्नचिन्ह के बाद
अनिवार्य थे उनकी उपस्थिति
उनके बिना अर्थ छूटे सब अधूरे
बिगड़ा जीवन का व्याकरण
अब कोई यह तय नही कर पाता
मुझे पढ़ते हुए कहाँ रुकना
"प्रगति" को-
प्राचीन और आधुनिक स्त्रियों....
तुम सिर्फ़
सजावट का सामान हो...
विज्ञापनों का आधार हो...
सौंदर्य का बाज़ार हो...
बिलकुल नहीं
सुनो स्त्रियों
अधरों को मत सिलो
मजबूत धागे से
केवल मुस्कुराओ,
खिलखिलाओ...
क्योंकि
तुम्हारी ये उन्मुक्त हँसी
सबको सुकून जो देती है...-
जानबूझकर कुछ कुछ
सीख गया हूँ
ठीक ठाक अंग्रेजी अब
मगर सच तो ये है
आज भी मुझसे कोई पूछे
कुछ स्पेलिंग
मै टाल जाऊँगा उसकी बात
हँसते हुए
कुछ और भले ही न सीखा हो मैंने
मगर मैंने सीख लिया है
अज्ञानता को अरुचि के तौर
पर विज्ञापित करना
अंग्रेजी की तो छोड़िए
इस बात के लिए मुझे हिंदी ने
माफ़ नही किया आज तक😄-
आसमां के नीचे, में ही
खिल आये हैं
कई गुलाब लाल- सफेद- पीले
एक एक डाल पे तीन-तीन
किसी किसी पे तो इससे भी अधिक....
मैं खाद डालता हूँ क्यारी में
मिट्टी को करता हूँ सही
और कपड़ों पर लगी मिट्टी
को झटकारने से पहले
क्षण भर में,
भर कर खुशबू
पी लेता हूँ बसंत...
"मैं माली हूं" खुस हो लेता हूँ
☘️🌸🍀🌸🌹💐🍀-
हर तरफ अजनबियों के साये लगते हैं
क्यूं अपने पराए लगते हैं
शिकवे शिकायत भी तुम्हीं से
नफरत भी तुम्हीं से....
अब इन बातों में छलावे लगते हैं
जिंदगी ने क्यूं मिलाए हमसे तुम
आप भी हमको कातिल लगते हैं
चेहरे पे चेहरा लगाए
सब फिरते हैं
मगर अच्छे लगते हैं-
दबी हुई है
मेरे लबों में
कहीं पे वो "आह"
भी जो अब तक
न "शोला" बन के
भड़क सकी
न "आँसू" बन के निकली
दिया है बेशक मेरी
नज़र को वो "दर्द"
बस "दुआ"
बन के निकली.....
-
कुछ इत्तेफ़ाक़ हो ऐसा कि एक शाम कहीं
किसी एक ऐसी जगह से हो यूँ ही मेरा गुज़र
जहाँ कोई मसला न हो
और हर कोई हैरत से देखता रहे
सब देखते रह जाएँ
@ दिल चाहता है....-
@ पहले......
पहले एक गौरैया होती थी
एक आदमी होता था
लेकिन आदमी इतना ऊँचा उड़ा
कि गौरैया खो गई....
पहले एक पहाड़ होता था
एक आदमी होता था
लेकिन आदमी ऐसे तन कर खड़ा
कि पहाड़ ढह गया...
पहले एक नदी होती थी
एक आदमी होता था
लेकिन आदमी ऐसे वेग से बहा
कि नदी सो गई....
पहले एक पेड़ होता था
एक आदमी होता था
लेकिन आदमी ऐसे ज़ोर से झूमा
कि पेड़ सूख गया....
पहले एक पृथ्वी होती थी
एक आदमी होता था
लेकिन आदमी इतने ज़ोर से घूमा
कि पृथ्वी फट पड़ी....-