جو بھی ہے اس میں خوش ہیں ہم ،
باقی سب ہے اللّٰہ کا کرم۔۔۔
जो भी है उसमें खुश हैं हम,
बाकी सब है अल्लाह का करम.-
तारीकी में छुपते हैं ग़म सारे जहां के,
मुख्तसर सी रोशनी में सबके राज़ खुलते हैं।
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इक चीख़ है ये सुन ले ये दर्द की है आह
क्यूं कर रहा सितम तू मिट जाएगी ये शां
हर नम आँखें देंगी तुझे बददुआ
ये बेबस सिसकते चेहरे तू क्यूं ना देख रहा
किसी का छिन गया सब कुछ कहीं कोई है रो रहा
कहीं कोई ढूंढ रहा है अपनी इब्तेदायी पहचां
थम जा ऐ ज़ालिम अब कर दे ज़ुल्म की इंतेहा
ये आह! तबाह कर देगी तेरा आशियां ...
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उम्र है कम, अल्फाज़ काफ़ी गहरे हैं,
शायद जिंदगी में इम्तिहानों के काफ़ी पहरे हैं।
عمر ہے کم، الفاظ کافی گہرے ہیں،
شاید زندگی میں امتحانوں کے کافی پہرے ہے۔
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न आजमाएं हमें इन फिजूल की खुराफात से,
कि हम वो हैं जो, कुछ भी करते है शिद्दत से करते हैं
खो ना दें कहीं आप हमें इन सब मामलात से,
कि हमारा वक्त भी उनके लिए है जिनसे हमारे दिल मिलते हैं।
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Nowadays no one is free.
(But for someone's critical situation)
If you give your little 'Devotion',
It can be turned into a huge 'Donation'.
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ज़ाय है वो इल्म जिस पर अमल न किया जाए,
और ज़ाय है वो अमल जो इल्म से मुताल्लिक न हो।
ضائع ہے وہ علم جس پر عمل نہ کیا جائے
اور ضائع ہے عمل جو علم سے متعلق نہ ہو ۔
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हम हैं इस आलम - ए - फानी में,
फिर भी इसी ओर भाग रहे हैं।
दे हिदायत इन्हें ऐ मेरे वाहिद हादी,
ये सब तुझसे गाफिल हुए जारहे हैं।।
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लोग लगाते हैं इल्जाम हम पर,
हमे खबर ही नहीं माजरा क्या है?
लोग हुए जा रहे दुनिया वालों के मोहताज इस क़दर,
उस खालिक की मोहताजी के सिवा हक़ ही क्या है?
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हैं लब खामोश कि कुछ कहा न जाए,
है इतने गहरे जख्म के सहा न जाए,
मगर फिर भी इत्मीनान है कि
कोई है देखने वाला सब कुछ, वरना
इस दर्द के आशियाने में जिया न जाए।
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