मैं खिड़की से झा का,
तो देखा मौसम की बुंदो को
बेफिक्र से बहते हुए,
हवा की रोह पर
राह बदलते हुए,
दालिओ में झुलते हुए
पत्तों में छिपते हुए...
न कोई पता,
न ठिकाना...
मानों कोई फिकर ही न हो जिंदगी का
किसी बच्चे के भाती खिलखिला रहे थे
मुझे तलक़ हुई
मैं झुंझला कर खिड़की बंद करने लगा
तपक से एक बुंद मेरे हाथ में बैठा
मनोहर करने लगा
उसकी मिठी बोलीं को अनसुना न कर पाया
अगले ही पल में भी उसी बेफिक्री में सामिल हो गई...
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मैं चला एक अजनबी शहर...
मैं चला एक अजनबी शहर...
जहाँ ईटों का मकान नहीं,
दुर दुर तक हरयाली दिखता है
जहाँ सुरज घरों की छतों में नहीं,
दुर क्षितिज में जमीन से मिलता है
मैं चला एक अजनबी शहर...
जहाँ गाड़ियों की शोर नहीं
पक्षियां गुनगुनाता है,
जहाँ चांदनी बल्ब की रोशनी से छिपता नहीं
झील में अपनी आभा बिखेरता है
मैं चला एक अजनबी शहर...
जो इस धरा पर नहीं
मेरे कल्पनाओं में बसता है-
You are the one reason for my life...
You are the little candle in dark...
Please never destroy...-
This lockdown has made me realise...
That Development not what we thought of...
Development is unity, cooperation, helping, love...
Which has kept us alive...
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तुम असफल के डर से क्यों कतराता है।
सुरज को भी उदय होने के लिए दुबता है।-
When raindrops patter...
It washes away the dust
Of the heart...-