Samkit Jain   (✍️Samkit...)
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भारतीय....
Joined 15 June 2020


भारतीय....
Joined 15 June 2020
8 APR 2022 AT 18:57

"People doesn't care how much you know..."

"People knows how much you care..."

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2 JAN 2022 AT 15:37

"गांधी जी के वचन और प्रयोग से जो सिद्धांत निकलता है, उसके अनुसार हिंसा केवल रक्तपात करने अथवा दूसरों को कष्ट पहुंचाने में ही नहीं है, उसका एक विकृत रूप दुराग्रही होना भी है।
●अपने मतवाद पर अहंकार पूर्वक अड़ जाना भी हिंसा ही है।●
भारत में अहिंसा के सबसे बड़े प्रयोक्ता जैन मुनि हैं, जिन्होंने मनुष्य को केवल वाणी और कार्य से ही नहीं प्रत्युत विचारों से भी अहिंसक बनाने का प्रयत्न किया था।
किसी भी बात पर यह मानकर अड़ जाना कि यही सत्य है तथा बाकी लोग जो कुछ कहते हैं वह सब का सब झूठ है और निराधार है- यह विचारों की सबसे भयानक हिंसा है।
मनुष्य को इस हिंसा के पाप से बचाने के लिए जैन मुनियों का "अनेकांतवाद" ही समर्थ है।
सह-अस्तित्व, सह-जीवन और पंचशील- इन सब का आधार अनेकांतवाद ही हो सकता है।"

-रामधारी सिंह दिनकर

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24 DEC 2021 AT 14:01

(श्लोकः)

"लालनात् बहवः दोषा, ताडनात् बहवः गुणा:।
तस्मात् पुत्रं च शिष्यञ्च, ताडयेत् न तु लालयेत्।।"

अर्थ:- पुत्र एवं शिष्य का लालन नहीं, ताड़न करना चाहिए,
क्योंकि लालन से अनेक दोष उत्पन्न होते हैं और ताड़न से अनेक गुण उत्पन्न होते हैं।

(ताड़न मतलब ठुकाई-पिटाई😁)

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24 DEC 2021 AT 13:50

एक वृद्धा स्त्री की कमर बहुत ही झुक गई थी, उससे एक लड़के ने हंसकर पूछा-

"अधः पश्यसि किं माते! पतितं तव किं भुवि।
रे रे मूर्ख न जानासि, गतः तारुण्य मौक्तिकम्।।"

अर्थ:- हे माता! तू नीचे क्या देख रही है? क्या तेरा कुछ ज़मीन पर गिर गया है?
(स्त्री ने जवाब दिया) अरे मूर्ख! तू नहीं जानता कि मेरा जवानी रूपी मोती गिर गया है.....

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21 DEC 2021 AT 16:39

(श्लोकः)

"आशागर्तः प्रतिप्राणी, यस्मिन् विश्वमणूपमं ।
कस्य किम् कियदायाति, वृथा वो विषयैषिता ।।"

अर्थ:- आशा रूपी गड्ढा प्रत्येक प्राणी में पाया जाता है। तथा आशा रूपी गड्ढा ऐसा है कि उस एक गड्ढे में समस्त लोक अणु-समान है।
अब यहाँ कहो, किसको कितना हिस्से में आए?
इसलिए जो यह विषयों की इच्छा है वह व्यर्थ ही है।

-आत्मानुशासन, श्लोक 36

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16 DEC 2021 AT 14:49

श्लोकः (इन्द्रवज्रा)

"कुलप्रसूतस्य न पाणिपद्मं, न जारजातस्य शिरोविषाणम् ।
यदा यदा मुञ्चति वाक्यबाणं, तदा तदा जातिकुलप्रमाणं ।।"

अर्थ:-उच्च कुल वाले व्यक्ति के हाथ में कमल नहीं होता और नीच कुल वाले व्यक्ति के सिर पर सींग नहीं होते।
व्यक्ति जब जब अपना मुँह खोलता है, उसके वे वाक्य रूपी बाण ही उसके कुल और जाति को प्रमाणित करते हैं।

हमारी वाणी से ही हमारी पहचान होती है।

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9 DEC 2021 AT 7:45

●श्लोक●

"वज्रादपि कठोराणि, मृदूनि कुसुमादपि।
लोकोत्तराणि चेतांसि, को हि विज्ञातुमर्हसि।।"

अर्थ:- जो कभी वज्र से भी कठोर होते हैं और कभी फूल से भी अधिक कोमल होते हैं-ऐसे अलौकिक चित्त वाले व्यक्तिओं को भला कौन जानने में समर्थ है?
अर्थात कोई नहीं।

-महाकवि भारवि, उत्तररामचरितम्।

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7 DEC 2021 AT 7:47

"प्रमाणमकलंकस्य, पूज्यपादस्य लक्षणम्।
धनंजयकवेर्काव्यं, रत्नत्रयमपश्चिमं।।"

प्रमाण में आचार्य अकलंक देव,
लक्षण में आचार्य पूज्यपाद स्वामी और
काव्य में कवि धनंजय- ये तीनों अपने अपने क्षेत्र के अद्वितीय रत्न हैं।

- महाकवि धनञ्जय
(धनञ्जय नाम माला)

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21 AUG 2021 AT 20:05

"भारतीय भाषाओं में प्रायः ही अँग्रेजी के 'इंडिपेंडेस' शब्‍द का समानार्थक शब्‍द नहीं व्‍यवहृत होता। 15 अगस्‍त को जब अँग्रेजी भाषा के पत्र 'इंडिपेंडेन्‍स' की घोषणा कर रहे थे, देशी भाषा के पत्र 'स्‍वाधीनता दिवस' की चर्चा कर रहे थे। 'इंडिपेंडेन्‍स' का अर्थ है अनधीनता या किसी की अधीनता का अभाव, पर 'स्‍वाधीनता' शब्‍द का अर्थ है अपने ही अधीन रहना। अँग्रेजी में कहना हो, तो 'सेल्‍फडिपेंडेन्‍स' कह सकते हैं। मैं कभी-कभी सोचता हूँ कि इतने दिनों तक अँग्रेजी की अनुवर्तिता करने के बाद भी भारतवर्ष 'इंडिपेंडेन्‍स' को अनधीनता क्‍यों नहीं कह सका? उसने अपनी आजादी के जितने भी नामकरण किए स्‍वतंत्रता, स्‍वराज्‍य, स्‍वाधीनता - उन सबमें 'स्‍व' का बंधन अवश्‍य रखा। यह क्‍या संयोग की बात है या हमारी समूची परंपरा ही अनजान में, हमारी भाषा के द्वारा प्रकट होती रही है?"

#हजारी प्रसाद द्विवेदी

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21 AUG 2021 AT 19:30

"कृत्रिमता के शूल शरों से जीवन कलशा फोड दिया।
चमक देखकर पथिकों ने अवितथ पथ से मुख मोड दिया।

पूछ स्वयं से आकर्षण ने कितना जीवन तोड दिया।
अच्छे दिखने के चक्कर में अच्छा बनना छोड दिया।।"

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