कुछ कहना चाहती हूं,
दिल खोलकर रोना चाहती हूं !
आज मैं खुद से मिलना चाहती हूं,
कुछ वक्त अपने आप को भी देना चाहती हूँ !
खुद से मिले ज़माना हुआ,
आज उस कमी को में पूरा करना चाहती हूं !
शिकायत तो जरूर करुँगी,
आज अपने आप को डांटना भी पड़े
तो पीछे नहीं हटूंगी !
पूछूँगी जरूर ,
क्यूँ अपने आप को खो दिया !
तू तो कभी इतनी कमजोर नहीं थी,
फिर क्यूँ खुद से मुँह मोड़ लिया !
अपनी खुशी को खोते देखा,
आँखों के आँसू को सूखते देखा,
कब इतनी अकेली हो गई ,
कि हर पल घुटने के लिए रेडी हो गई !
धीरे धीरे अपने अंदर के अहसासों को भी मार रहीं है!
ये जो दिल मे तूफान सा उठ रहा है,
मानो किसी अपने को तलाश रहा है !
जब मिलेगा इसे अपना कोई,
तोड़ देगा ये सारे बांध !
डर है बहा ना ले जाए ये किसी अपने को,
इसलिए लौटती हूँ में फिर उन अंधेरों में !
मेरी खुद को पाने की जंग जारी रहेगी,
रब से हर पल गुजारिश रहेगी !!-
खुश रहने लगे हो तुम
यादों को मारकर वर्तमान जीने लगे हो तुम
सब कुछ भूल कर आगे बढ़ने लगे हो तुम
रंगों से भरी एक तस्वीर दिल में बनाई थी,
उन रंगों को बेरंग करने लगे हो तुम
शायद कमी ही रही होगी कुछ, तभी तो
जिंदगी के पन्ने बहुत जल्दी पलटने लगे हो तुम
हाँ खुश रहने लगे हो तुम-
होंसलों को बुलंद करके तो देखो
अपनी परछाई को ही अपना साथी बनाओ
मन में विश्वास रख कर तो देखो-
क्यूँ ना मैं भी चिड़िया बन जाऊँ
आसमान की सैर लगाऊँ
पिंजरा तोड़कर आज मैं भी उड़ जाऊँ
मन चाहा घर बनाऊँ
पानी के समंदर में डुबकी लगाऊँ
हँसते खेलते ये जीवन बिताऊँ
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मैं थी, तू था
टूटे हुए दिल का सहारा तू था
मेरे अकेलेपन का किनारा तू था
हँसते हुए होंठों का इशारा तू था
मेरे साथ सिर्फ तू ही था
मैं थी, तू था
दिन का उजाला तू था
रातों का सन्नाटा तू था
मेरे साथ सिर्फ तू ही था
मैं थी, तू था
अनजान रास्तों का साथी तू था
मंज़िल में साथ भी तू था
मेरे साथ सिर्फ तू ही था
मैं थी, तू था
शांति भंग करने में तू था
मुझे तंग करने में तू था
मेरे साथ सिर्फ तू ही था
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खुद की बस्ती जलाकर
दूसरों को रोशन कर रहा है
ये तू गलती नहीं, गुनाह कर रहा है
खुद को रास्ते पर लाकर
इमारतें खड़ी कर रहा है
ये तू गलती नहीं, गुनाह कर रहा है
खुद को भुला कर
दूसरों को रंगीन कर रहा है
ये तू गलती नहीं, गुनाह कर रहा है
अपने दर्द को छिपाकर
दूसरों का मरहम बन रहा है
ये तू गलती नहीं, गुनाह कर रहा है
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सम्भलना चाहूं पर सम्भल ना पाऊं
टूट के बस बिखरती ही जाऊं
सवालों से अब में घबरा सी जाऊं
बिन देखे तुझको में रह ना पाऊं
ख्वाबों में मेरे में तुझको ही पाऊं
मिलना में तुझसे हर रोज़ ही चाहूं
लगता मुझे किस्मत का खेल ये सारा
काश हो जाये अपना भी साथ दोबारा-
रिश्तों को सजाया मैंने
पलकों से निभाया मैंने
चरणों को मस्तक से लगाया मैंने
रुठे हुओं को मनाया मैंने
अपने आत्म सम्मान को खोता पाया मैंने
सुकूँ की तलाश में खुद को हमेशा पीछे पाया मैंने
मांझे की डोर बनना चाहा मैंने
पर खुद को कटी पतंग सा पाया मैंने-
दिल में जख्म देकर, जिस्म के जख्मों की बात करते हो
ए- गालिब, आज तुम हमारी इतनी परवाह क्यों करते हो
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खाली सा मन मेरा
खाली सा दिल मेरा
बनी आज में लोगों की लिखावट हूँ
जैसा मोडे वैसा मुड जाऊं
जैसा तोडे वैसा टूट जाऊं
वैसे तो मैं पूरी हूँ
पर सच पूछो तो मैं खुद में अधूरी हूँ
अपनाना में बार बार तुझको चाहूं
पर शब्दों से तेरे मैं खुद को छलनी पाऊं-