मंजिल इतनी भी दूर नहीं कि हम उसे पार करने का हौसला ही छोड़ दें... मुश्किलें इतनी भी बड़ी नहीं कि हम उसे कम ना कर सके... अक्सर सफलता की राहे चट्टाने भरी होती है।। पर उन चट्टानों को गिराना नामुमकिन भी तो नहीं।। हमारी हर सुबह एक नई उम्मीद है... और उन उम्मीदों को मारना भी तो ठीक नहीं.... हर एक चुनौती और हर एक हार हमें अपने मंजिल के करीब पहुंचाती है.... मंजिल इतनी भी दूर नहीं कि हम उसे पार ना कर सके ।।
वो नादानियां से भरा बचपन और बेपरवाहीयों से भरे हम वो छोटी-छोटी बातों की बेशुमार खुशियां ना कोई जिम्मेदारियां,ना कोई सवाल वो छोटे-छोटे लम्हों का बेशुमार खजाना कितने अनमोल थे वो बचपन, और कितनी संघर्षों वाली बची है अब ये जवानी।।।
अब आजाद कर मुझे हार गई हूं इन बंदिशों से फिर से ज़रा खुद को पाने दे अब और जज्बा नहीं खुद से या तुझसे लॾने में थोड़ा सुकून चाहती हूं अपना फैसला खुद करना चाहती हूं अपनी जिंदगी जीना चाहती हूं एक एहसान कर मुझपे कि कि खुद से आजाद कर मुझे
हर लम्हा कहीं खोता क्यों है.... ऐसा होता क्यों है.. पुराने जख्मों को हमेशा कुरेदता क्यों है।। दो कदम आगे बढ़कर.... फिर पीछे धकेलता क्यों है... हर बार ये ऐसा करता क्यों है।।।