Samiksha Dwivedi   (शब्दार्थ📝)
76 Followers · 129 Following

read more
Joined 23 October 2021


read more
Joined 23 October 2021
31 JAN 2022 AT 23:00

गिरना:-

गिरना हमेशा बुरा नहीं होता।
गिरना देखा है कभी नदी का।
शीतलता देती,जीवनदात्री।
गिरना झरने का शुद्धता को समेटे
अपने वारि में।
भास्कर की एक एक रश्मि भी तो कितना लंबा सफ़र करती है तय
तेज़ का उपहार देने को।
गिरना पेड़ों की शाखों से
सूखे पत्तों का।
संकेत है हाथ फैलाए स्वागत करने को बसन्त का आतुरता के साथ।
जिंदगी भी यही समझाती।

समीक्षा द्विवेदी
— % &

-


29 JAN 2022 AT 22:54

संघर्ष की यात्रा में ..... मिलते कष्ट के लिए ख़ुद से संवेदना रखना
रोक देता है बढ़ते कदम।।

समीक्षा द्विवेदी— % &

-


29 JAN 2022 AT 11:07

हौसला रखिए कि,
जमाने से लड़ना भी पड़ता है।
आशा रखिए कि,
जिंदगी के दिन एक से नहीं रहते हैं।
सम्हलिये मन कि,
इसको भटकाने वाले बहुत।
अच्छा कीजिए कि,
ये एक दिन लौटता जरूर है।
पंजो की पकड़ जमीन पे मजबूत कीजिए कि,
राहें ऊंची नीची हैं।
खुद को बाज़ बनाइए कि,
खुद को बहुत ऊपर उठाना है।

समीक्षा द्विवेदी



— % &

-


27 JAN 2022 AT 22:24

आधा नहीं पूरा मिलता है।
बस.… हौसला कहता है,
कि मेरी बांह पकड़ के बंदे तू चलता चल।
भरोसा भी ये दिलाता है भरोसा
बस तू खुद को रख मेरे साथ।
टूटते मन को धीरज देता है,
कांधे पर सबर की थपकी।
ज्ञान यही दर्शन देता है।
मेहनत का फल जरूर मिलता है।।

समीक्षा द्विवेदी
— % &

-


25 JAN 2022 AT 22:56

दोस्त:-

तीन दोस्त साथ होते बुरे वक़्त में।
उनका साथ.. हाथ से कभी ना जाने दें।


सब्र
हौसला
शुक्र


समीक्षा द्विवेदी

-


23 JAN 2022 AT 10:56

अठखेलियां:-
वो जो ना कर पाई खुल के वो दबी कुचली स्त्रियां।
टोका टोकी ,रोक टोक ने छीन लिए उनसे बेझिजक जीने के एहसास।
नहीं बता पायी कभी वो सजन के कान में चुपके से की कितना प्यार है उन्हें।
वो तो बस पिसती गई सिल पे मेहंदी की तरह,
अपना सारा सार,रंग,रूप देने के लिए निभाने के नाम पे सब कुछ।
बीत गया पूरा जीवन उसके एहसास से परे।
दो शब्द मीत के ना सुन पाई प्यार के।
ना बिता पाई शामे प्रियतम के साथ।
जिम्मेदारियों का कोहरा इतना घना था कि शायद उन्हें पता ही नहीं चल पाया।
रस्म तो एक ये भी थी साथ बैठने की ,बोलने की,पुराना बांटने,नया संजोने की।
दोनों ही भूल गए निभाना रस्म जरूरी प्यार की।।

समीक्षा द्विवेदी

-


22 JAN 2022 AT 19:03

कितने राज़ छिपाए है तू।
कितनो को आंगन में साथ लिए है तू।
सूरज,चांद,सितारे,
सात रंग सारे के सारे।
एक सा,अविचल है तू।
तू है विशाल ,विस्तृत।
आंसू तेरे हर्ष,दुःख के बनके बरसे बारिश की बूंदें।
सारा गुबार समा कर खुद में,
तू छाया सबके ऊपर।
तू....तू है निश्चल,अभिराम,अजेय सदा।।

समीक्षा द्विवेदी

-


20 JAN 2022 AT 19:10

आह:-
कहानियां लिखी गईं खूब प्रेम की, मिलने की ,बिछड़ने की,तड़पने की,दूर जाने की, पास आने की।
नहीं लिखी गईं कहानियां पूरे होते प्रेम की।
आह! कितनी अक्षम हो जाती हैं दो आत्माएं प्रेम हो जाने पर।

समीक्षा द्विवेदी

-


30 NOV 2021 AT 18:40

जिंदगी की, उसके मसलों की,मुश्किलों की।
अब कश्मकश से दो दो हाथ कर चुकी है मसलों और मुश्किलों दोनों को साथ लिए।
नाव पे चली जा रही है ये जिंदगी।
आगे बढ़ रही है इरादों की पतवार लिए पार कर करने सब कुछ।
जितने हर मुकाबला।

समीक्षा द्विवेदी


-


18 JAN 2022 AT 21:05

सिर्फ तुम्हारा या सिर्फ तुम्हारी केवल एक यही शब्द प्रेम पत्रों के अंतिम में अनिवार्य सा लिख दिया जाए।
तो हर प्रेम कहानी पूरी हो जाए।
पा ले वो अपनी अपेक्षित परिणति को।
लिखी जाए कहानियां सफल प्रेम की।
जो हो उनकी पूर्णता का प्रतीक।
प्रतीक हो उनकी उपयोगिता का।।

समीक्षा द्विवेदी

-


Fetching Samiksha Dwivedi Quotes