कहीं भीड़ है तुम्हारे साथ ,
कहीं अकेले तुम हो ,
कभी आशाओं का भँवर साथ है,
कभी निराशा में गुम हो।
वो भीड़ भी ज़रूरी है,
ज़रूरी है अकेला होना भी ,
कुछ पाना भी ज़रूरी है,
ज़रूरी है कुछ खोना भी ।।-
Hisaab rkhne k daur me
Behisaab lagav rkhti ho tum ,
Kuch shaqsiyat aesi hai tmhari ,
Ulajh kar bhi bat suljhane ka bhav rkhti ho tum.-
हर उस चीज जिसके बारे मे,
कह देता है ये मन ,
कि ये नही हुआ तो क्या होगा?
उसके ना होने के बाद निहित है जीवन ।-
अस्तित्व खो जाएगा सवेरे तक
चांद को ये खबर जरूर है,
यूं तो तकता रहा अपने अक्स को
रात भर उस झील में,
यकीनन उजालों में खोई पहचान
पाने का उसका सब्र जरूर है।
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काबिलियत तारीफ़ है कुछ बातें,
जो बातों बातों में रह जाती हैं।
अनकही सी बस मुस्कुरा कर टल जाती हैं,
यूँ ही नहीं इक भावना कविता बन जाती है।।-
तूफानों ने तो चुनौतियाँ ही दी,
दर्द तो उन मौसमी हवाओं का था,
अपना कहा ,
और छू के गुज़र गयी।-
एक अधूरी कहानी को लेकर,
वो लेखक बैठा रहा रात भर,
यूँ भारी भारी ईंटों का बोझ लिए,
है वो मज़दूर पसीने से तर बतर,
उस इंसान ने भी उठा लिया सर,
जो थक गया था गिर कर,
ये सब कुछ पाने की होड़ है ,
या कश्मकश है कि-
क्या होगा कल आज से बेहतर ??
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Understanding me becomes easy ,
when I belong to one's own,
but is quite quirky,
when I be a component of other's and not shown.
The nature of mine could be the result of one's experiences,
Between who is right and who is wrong,
what is ethical? and what is not? ,
It's me, who creates all the differences.
I could be unique or member of a rat race,
I could be the reason of any consensus or discord,
well.. I could differ from face to face,
two conflicting me could be like one sheath & two swords.
I couldn't be understood by being restrictive,
I rather, by nature is more subjective,
now let me introduce myself....
Iam" PERSPECTIVE"
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एक मुक्तक सा उन्मुक्त छंद रहूँ,
नाकाम हूँ तब भी बुलंद रहूँ,
ख्वाहिश बस इतनी ही है हौसलों की,
कि पिंजरे में भी स्वछंद रहूँ।।
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रुक जाओ तो चलने को आवाज़ हो गर,
खो जाओ तो मिलने की एक फ़रियाद हो गर,
ये दुनिया छोटी है उस शख्स को,
जिसकी छोटी सी दुनिया वजह जीने की आज हो अगर।।
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