sameer shrivastava   (Inqualabi)
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Joined 28 August 2017


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Joined 28 August 2017
26 DEC 2020 AT 0:00

ये दुनियाँ आज भी उलझी हुई है
महज़ उसी इंसान की करतूतों पर,
वही जिसने आदम को ये बताया था
कि खुदा और भगवान अलग अलग हैं।

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6 SEP 2020 AT 22:08

बहुत शोर मचाते हैं जो लोग मजबूरों की लाशों पर,
काश किये होते तुम सवाल हुक्मरानों की अदाओं पर।

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29 AUG 2020 AT 22:21

काफ़िरों का क्या ही वास्ता किसी मज़हबी तालीम से,
मजहब का नाम भी मज़हबियों से है और बदनाम भी।


काफ़िर= non believer; मज़हबी तालीम=religious education; मजहब=religion;
मज़हबियों= followers

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15 AUG 2020 AT 12:19

हैं लाख दर्द छुपे सीने में फिर भी क्या कहिये,
मुस्कुराते हैं भीगी आंखों से फिर भी क्या कहिये,
फ़क्र होना चाहिये ऐ हिंद वालों तुम्हें अपने माज़ी पर,
लुटा दी ज़िन्दगी लाखों ने इसके वजूद की ख़ातिर क्या कहिये।

माज़ी=Past

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12 AUG 2020 AT 23:41

यूँ ही एक एक करके सब मारे जा रहे हैं,
कुछ इश्क़ में तो कुछ सियासत से हारे जा रहे हैं।

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18 JUL 2020 AT 14:55

सोच तक नहीं पाते हैं जो लोग इंसा की माफ़िक,
वो आदमखोर लोग खुदा बनने का ख़्वाब रखते हैं।

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10 JUL 2020 AT 0:59

दुनियाँ की बातें मैं नहीं करता,
ये दुनियाँ अजब निराली है,
जीते जी दे ज़हर का प्याला,
मर जाये जब तब मीरा माँ कहलाती है।

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24 JUN 2020 AT 16:08

ज़िन्दगी यहां मिट्टी सी सस्ती है ये इंसानों का व्यापार है,
मौत भी यहां बिक जाती है ये तमाशबीनों का बाज़ार है।

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25 MAY 2020 AT 22:46

ये इश्क़ में ही मुमकिन है कि
किसी के रिसते पाँव को देख
किसी की आंखों का पानी छूट जाता है,
सियासत को क्या ही वास्ता ऐसी बातों से
यहां तो मरने वाले रोज़ ही मरते हैं मगर
इन बातों से कोई वोट बैंक थोड़े टूट जाता है।

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21 APR 2020 AT 20:54

आलम-ए-जंग है दिलों में आखिर अंजाम क्या होगा,
अमन, कफ़न ओढ़े पसरा चौराहे पर सरेआम मिलेगा।

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