Sameer Jain   (समीर)
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Joined 2 February 2019


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22 APR AT 15:23

बड़े अजब का सानिहा है,
नमक ढूंढने निकल पड़ना....

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5 MAR AT 22:53

शब खाक उड़ाने को, बाजार चाहिए,
और गुफ्तगु के वास्ते, दीवार चाहिए,
हर आदमी घिरा हुआ है, मुफलिसी से यूं,
हर आदमी को शख्सियत, ज़रदार चाहिए,
यूं ही नहीं होता यहां, एक आदमी कोई,
खुद आप भी होने को तो, किरदार चाहिए....

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2 MAR AT 9:07

सब कुछ मुमकिन है लेकिन, जब अफसाने हो जाएं,
अच्छे-खासे लोग हैं हम, तो क्यों दीवाने हो जाएं,
तेरे शहर में हम जैसों को, ज़रा जगह मिल जायेगी,
तेरे शहर में, गर थोड़े से, पागलखाने हो जाएं....

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16 FEB AT 7:59

उस पारसा को कीजे, न इतना समझदार,
वो दुनियादार होगया, तो बात करने लग पड़े...!

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2 FEB AT 17:05

हिरासाँ नही हूं पर, मैं ज़ेर-ए-आब हूं,
हूं तो मैं बदलिहाज़, पर हाज़िरजवाब हूं,
पहली दफा मिला है, मेरे तौर का कोई,
मुझे लगा था मैं यहां सबसे खराब हूं....

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18 JAN AT 21:33

इतने खुले मिजाज़ की, तवक्को है दोस्ता !
दिल खोलना पड़े है, जॉं देनी पड़ सके......

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15 JAN AT 1:19

सुबह भी शाम हो गई,
कर करके दौड़-भाग,
फिर रात भर देखा किए,
नींद में चलने के ख़्वाब.....!

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12 JAN AT 9:07

भागा तो बहुत हूं मैं अपने से कहीं दूर,
पीछे रहा हमेशा जल्दी की दौड़ में..….!

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10 JAN AT 2:23

होने लगी है आपसे, कोई बात-चीत कुछ,
अब वाकई क्या हाल है, सच कह भी दीजिए....!

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9 JAN AT 1:34

गलत को गलत हम तभी तो कहें,
गलत क्यों गलत है पता भी तो हो.....

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