थोड़ी सी नासमझ थोड़ी सी समझदार हो
तुम जैसी भी हो मेरी बहन कमाल हो
कभी लड़ती हो तो कभी झगड़ती हो
झूठ कहु तुम बवाल हो
बहुत कुछ कहते कहते रह जाती हो
भावनाओं में बहुत जल्दी बह जाती हो
जब जब जानने की कोशिश करती हूँ तुम्हे
तब तब पता चलता है
तुम तो चटपटी सी हाजमोला की दुकान हो
रिश्ता बहन का किरदार माँ का निभाती हो
कभी बचपना तो कभी बडप्पन दिखाती हो
सच कहूं बहन तुम महान हो
-
अब मन्जिल कितनी दूर है
क्योकि में और मेरी कलम
सफर का लुत्फ उठाने में मगरूर है ... read more
हमेशा एक सा नही रहता
ये सोचकर मुस्कुरा दिया करो
आज नही कल मन्जिल मिल जाएगी
ये उम्मीद खुद को थमा दिया करो-
जिन्दगी की इस भाग दौड़ में
अपने कुछ अरमानों को लेकर
तुम्हारे साथ चलना चाहती हूँ
मेघ की गरज पर
तुम्हारा हाथ थामकर
थिरकना चाहती हूँ
टप टप बरसती
बूंदों का शोर
तुम्हारे सीने लगकर
सुनना चाहती हूँ
बेमौसम बरसती बारिश में
तुम्हारी आँखों मे आँखे डालकर
भीगना चाहती हूँ
कुछ यूं
मैं भी इश्क करके
राँझे की हीर
बनना चाहती हूँ
-
मत पूछो तलाश किस चीज की है
मम्मी पापा की आखों में
खुशी के आशु देख सकू
इस चीज की है,,,,,,-
वक़्त अगर ठहर पाता
तो कब का थाम लेती
बैठकर ख्वाहिशो के आगे
जिन्दगी को और गहराई से जी लेती-
गुजरे हुए साल से शिकायत नही
आने वाले साल से उम्मीद रखती हु
मैं झल्ली सी लड़की पुरानी अलमारी में
न जाने कितनी रंग बिरंगी खुवाहिशे रखती हूं-
तुम्हारी ये बेरंग सी जिन्दगी मुझे अच्छी नही लगती
तू इसे इन्द्रधनुष के रंगों से रंगती कयू नही
तुम्हारी ये सुनी कलाई अन्धेरी रात सी लगती है
तुम चाँद तारो की चूड़ी बना कर पहनती क्यू नही
तुम्हारी ये जिन्दगी बंजर जमीन सी लगती है
तुम इसे नयी ख्वाहिशो से उपजाऊ बनाती क्यू नही
जिसे जाना था वो चला गया गुजरे हुए लम्हे की तरह
तुम आने वाले कल का खयाल करके मुस्कुराती क्यू नही
ये जिन्दगी तुम्हारी है
तुम इसे अपने अंदाज में जीती क्यू नही-
हमारा इश्क जनवरी की ये मीठी सी धूप
मैं पार्वती का और तू भोले का सा रूप,,,,,,,-