मेरी सोच का रुआँ रुआँ
तेरी सोच में तब्दील हो
उनके बीच भी ज़िक्र हो कोई
तो तुझसे दूर ना लगे
अब भी मैं और तू का खेल
चल ही रहा है
अब भी तेरी मेरी का पर्दा लग ही रहा है
क्या अर्ज़ी दूँ किसकी अदालत जाऊँ
जहाँ मैं खुदा से, खुदा के लिए बोल पाऊँ
की मैं तुझसे दूर नहीं तो है क्यों ये सोच
जब तन तेरा मन तेरा और धन भी
तो क्यो लगता अब भी की मैं की बू आ रही है मुझसे
इतना सब होने में भी तो वक्त लगा है ठीक है
ठीक है शायद और भी बनाये होंगे मुखड़े जो तुम्हे ज़्यादा पसंद हो
पर तुम्हारे ही हाँथों बनाया मैं भी तो हूँ
विश्वास रखो अपनी कलाकारी पर और सोचो क्यों बनाया था
तुम्हारी याददाश्त वापस आए तो बताना
भटक रहा है तुम्हारा मैं अब तक तुम के लिए …
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Samarpit Golani
(Samarpit)
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संगीतकार | गायक | आगन्तुक
Joined 25 September 2019
17 FEB AT 8:41
29 OCT 2023 AT 10:05
इस गुत्थी में कई रंग हैं
ये गुत्थी सुलझाने की नहीं
ओढ़ने कि चीज़ है ‘-
5 JUL 2023 AT 1:10
महसूस होना अब सब कुछ नहीं मौला
कर रहम अब रूबरू हो जा
ख़बर है ये रास्ते तेरे ही हैं
बस मंज़िल अब हासिल हो जा
थका नहीं बस खेलना सच में नहीं चाहता
खेल, जा, मुझसे जुदा हो जा
सबसे क़रीब मेरे तू ही है
तुझसे मिलने में ही देरी कैसे
आ अब निराकार से साकार हो जा
कर करम हमेशा के लिए तू मेरा हो जा
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16 APR 2023 AT 12:00
यहाँ सिर्फ़ तुम ज़िंदा हो
तुम चले गये, सब चले जाएँगे बारी बारी-
16 APR 2023 AT 11:38
प्यार कभी कभी तुम्हारे सरि का मिलता नहीं
वो अपनी धुन में है, ख़ुद का रंग दिखाना चाहता है-