एक सवाल है "क्यों?" , मैं पूछूँगा तुमसे
जब मेरे पास ना कुछ पाने को होगा ना कुछ खोने को होगा,
ना कुछ हँसने को होगा ना कुछ रोने को होगा,
जब मुझमे मुझसा कोई नहीं रहेगा,
जब कोई मुझको कायर नहीं कहेगा,
जब तुझे खोने का डर नही होगा,
जब तुझे का पाने का सबर नही होगा,
जब मैं उम्मीदों के कब्र पे आऊंगा,
जब अपनी हार को गले से लगाऊंगा,
जब मैं पत्थर बनकर रह जाऊंगा,
जब मैं पानी बन कर बह जाऊंगा,
जब मैं हवा बन कर पहाड़ों से टकराऊंगा,
जब मैं फ़िर लड़कर गिर जाऊंगा,
जब मैं सपनों में खो जाऊंगा ,
जब मैं उम्रभर को सो जाऊंगा,
तब एक सवाल है "क्यों?" , मैं पूछूँगा तुझसे....
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हौसलों और उम्मीद से भरा एक जिद्दी परिंदा हूँ मैं ,
गिर कर ज़मीं पर अपने हौसलों पे जिंदा हूँ मैं,
एक दिन आसमां से उपर उड़ने की उम्मीद पे जिंदा हूँ मैं,
थमेगा ये सफर अब जब ये साँसें थमेंगी,
अभी टूटे परो को समेट के हवा से बातें करने को जिंदा हूँ मैं,
हौसलों और उम्मीद से भरा एक जिद्दी परिंदा हूँ मैं ,-
चल अपनी आखिरी धड़कने भी तेरे नाम करता हूँ,
मैं मुकम्मल ये आखिरी काम करता हूँ,
अब कोई हक़ नही मेरा तेरे शहर के इन हवाओं पे ,
मुनासिब यही है की मैं खुद को गुमनाम करता हूँ,
मैं मुकम्मल ये आखिरी काम करता हूँ....-
बातों बातों में फ़िर तेरी बात आई है,
बड़े दिन बाद फ़िर तेरी याद आई है,
उलझे थे कई सवालों में हम,
उम्मीद है इसबार तु जवाब लाई है,
बड़े दिन बाद फ़िर तेरी याद आई है........
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हमसे मतलब की बात नहीं होती,
शायद हम बेमतलब ही इस मतलब की दुनिया में बेमतलब की बातें करने आये हैं.....
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अब तु मेरा हाल ना पूछ,
जो पूछना है पूछ लेकिन फिलहाल न पूछ,
क्या बताएँ किस तरह गुज़री है हिज़्र की रात,
तु अब उस रात के सवाल न पूछ.
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छोड़ कर आये थे सब अपना की ये नही तो वो करेंगे,
अब तो लगता है ना चैन मिलेगा ना चैन से मरेंगे......
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जले इतना की अब बुझाए कौन,
इस शहर को अब बसाये कौन,
मैं समझा की तुम हो तो हर मसले हल हो,
ये बात अब तुमको बताये कौन ।
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रोज़ खुद से लड़ रहा हूँ मैं,
ना जाने किस बात पे बिगड़ रहा हूँ मैं,
मौत कहीं बैठ के हँस रही है मुझपे,
ना जाने किस बात पे अकड़ रहा हूँ मैं ।
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एक पन्ने पे मैं "मैं" लिख दूँगा,
एक पन्ने पे तुम "तुम" लिख देना,
एक पन्ना तुम कोरा छोड़ो,
एक पन्ने पे हम "हम" लिख देंगें ।।
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