महज़ पत्तों के टूट जाने से शाखें नहीं मरा करते हैं
बाद पतझड़ के शज़र ही खुद को हरा करते हैं।-
यही मेरी माशूका है, यही मोहब्बत है।
A Journalist !!
जब हमने हथियार निकाले,
जब रणभूमि तैयार किया
तो फिर लगाया पूर्णविराम क्यूँ?
है शहीदों का परिवार पूछता,
मिटी सिंदूर का श्रृंगार पूछता,
कहो तख्तदारों अभी युद्धविराम क्यूँ?
अगर उठी है लहरें आतंक की,
उन लहरों को तुम राख करो।
इन नापाक चांडालों को
तुम अभी सुपुर्द-ए-खाक करो।-
हर किसी के हिस्से में इक सफर होता है,
घर से निकलो तो पता लगता है,
घर जैसा भी हो घर होता है।-
अपनी ख्वाहिशों में यूँ न समेटो मुझे हर पहर
किसी रोज़ जो मैं बिखर जाऊँ तो क्या करोगी
सुना है तेरे खाबों, ख्यालों में बसता हूँ आजकल
मेरी जान अगर मैं मर जाऊँ तो क्या करोगी-
जैसे कुम्हार की अदाकारी से
मिट्टी खूबसूरत हो जाती है
ऐ मेरी हमनवां,
तुम भी मुझे ठीक वैसे ही तराशो ना।-
गुज़रे वक्त का यही अफसाना है,
अब ना चाँद है, ना कोई दीवाना है।
आवारगी, दिल्लगी, मोहब्बत खूब हो गई
अब परिन्दे को घर लौट जाना है।-
ना, तुमने तो बस औकात दिखाए
ये दिल भला तुमने तोड़ा कहाँ।
मेरी जाँ, मैं फिर से मोहब्बत करूँ
तुमने मुझे इस हाल में छोड़ा कहाँ।-
मंजिल मिलती नहीं मोहब्बत की कुछ दूर चलने पर
पहले दरकना, फिर टूटना और फिर बिखरना पड़ता है।
जिस्म मिट जाता है, रूह मर जाती है और फिर
कई दफा अपनी ही कब्र से गुजरना पड़ता है।
यादों की बंदिश और जैसे सुकून एक चेहरे में कैद
फिर भी उम्मीद की जंजीरों से निकलना पड़ता है।
शराब, शबाब, महफ़िल, हुस्न ये तरीका पुराना है
अब अगर दिल टूटे तो राँझे को संभलना पड़ता है।-