Samar Anand  
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लिखना मेरा शौक नहीं, मेरी आदत है
यही मेरी माशूका है, यही मोहब्बत है।

A Journalist !!
Joined 28 January 2018


लिखना मेरा शौक नहीं, मेरी आदत है
यही मेरी माशूका है, यही मोहब्बत है।

A Journalist !!
Joined 28 January 2018
11 MAY AT 15:59

महज़ पत्तों के टूट जाने से शाखें नहीं मरा करते हैं
बाद पतझड़ के शज़र ही खुद को हरा करते हैं।

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10 MAY AT 22:18

जब हमने हथियार निकाले,
जब रणभूमि तैयार किया
तो फिर लगाया पूर्णविराम क्यूँ?

है शहीदों का परिवार पूछता,
मिटी सिंदूर का श्रृंगार पूछता,
कहो तख्तदारों अभी युद्धविराम क्यूँ?

अगर उठी है लहरें आतंक की,
उन लहरों को तुम राख करो।

इन नापाक चांडालों को
तुम अभी सुपुर्द-ए-खाक करो।

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10 MAY AT 19:57

वो जा रही है
और हलक से जान भी

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10 MAY AT 13:25

मैं तुझमें बसना चाहता हूँ
क्या तुम पनाह बन सकती हो?

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10 MAY AT 12:53

हर किसी के हिस्से में इक सफर होता है,
घर से निकलो तो पता लगता है,
घर जैसा भी हो घर होता है।

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9 MAY AT 10:18

अपनी ख्वाहिशों में यूँ न समेटो मुझे हर पहर
किसी रोज़ जो मैं बिखर जाऊँ तो क्या करोगी

सुना है तेरे खाबों, ख्यालों में बसता हूँ आजकल
मेरी जान अगर मैं मर जाऊँ तो क्या करोगी

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9 MAY AT 9:50

जैसे कुम्हार की अदाकारी से
मिट्टी खूबसूरत हो जाती है
ऐ मेरी हमनवां,
तुम भी मुझे ठीक वैसे ही तराशो ना।

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8 MAY AT 14:42

गुज़रे वक्त का यही अफसाना है,
अब ना चाँद है, ना कोई दीवाना है।

आवारगी, दिल्लगी, मोहब्बत खूब हो गई
अब परिन्दे को घर लौट जाना है।

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8 MAY AT 10:24

ना, तुमने तो बस औकात दिखाए
ये दिल भला तुमने तोड़ा कहाँ।

मेरी जाँ, मैं फिर से मोहब्बत करूँ
तुमने मुझे इस हाल में छोड़ा कहाँ।

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7 MAY AT 21:25

मंजिल मिलती नहीं मोहब्बत की कुछ दूर चलने पर
पहले दरकना, फिर टूटना और फिर बिखरना पड़ता है।

जिस्म मिट जाता है, रूह मर जाती है और फिर
कई दफा अपनी ही कब्र से गुजरना पड़ता है।

यादों की बंदिश और जैसे सुकून एक चेहरे में कैद
फिर भी उम्मीद की जंजीरों से निकलना पड़ता है।

शराब, शबाब, महफ़िल, हुस्न ये तरीका पुराना है
अब अगर दिल टूटे तो राँझे को संभलना पड़ता है।

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