Samad Alig   (©Samad Alig)
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Marinate your thoughts...✍️
Joined 30 January 2020


Marinate your thoughts...✍️
Joined 30 January 2020
2 HOURS AGO

एक गुलाब बाजू में आकर बोला है
क्यों इतने सुर्ख़ हो गए हो समद
शायद तुमको भी पसंद आई मोहब्बत

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3 HOURS AGO

मत बोल कि मैं अब तो ख़ाक-बसर हूं
मैं जहां भी बैठूंगा आज भी पुर-असर हूं

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9 HOURS AGO

सुनहरे ख़्वाब लिए वो घर ने निकला
याद आया वादा जो था अगला पिछला
याद आईं उसको मां की बातें
याद आईं टपकती छप्पर की रातें
याद आए वो सारे बर्तन जो बारिश में
खाने से ज़्यादा पानी रोकने में इस्तेमाल हुए
याद आईं वो मोमिया ( प्लास्टिक) भरने पर
जिसे बारी बारी खाली करते
डर ने कहीं बारिशों में फट न जाए
बस यूँ ही दिन रात याद आए बारिश के
अब गांव की दहलीज़ पर फिर खड़ा था
छप्पर नहीं अब कहीं धरा था
थूनी भी तबेलों की मुड़ गईं थीं
तरक्की घरों की छत में रच गई थी
हर तरफ़ मोबाइल प्राणी व्यस्त था
किसी के झूठे वादों के पहाड़ से दबा
खिलखिला रहा क्यों.. निकल नहीं पा रहा
सोच उसकी रील जैसी हुई जाती
क्षणिक सुख में जवानी नालियों में नहीं जाती
कुछ नग्न तस्वीरें फिर परोसी गईं ताकि और
नालियों में यौवन बह निकले..
बस अब मैं वो दर्द ए जवानी और इश्क़
को शायद घूरती निगाहों के वक्ष स्थल में
और सरकारें अपने साल इनकी बढ़ती
वासना और व्यभिचार में देख रही थी
गाँव में कोई मटक कर नहीं चलता अब
तरक्की ने डर को पुलिसिया नाम दिया है
अब सगे रिश्ते के बाद सब देह मात्र हैं
मैं उसी बारिश का इंतेज़ार कर रहा हूं..

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9 HOURS AGO

अब और कितना मदहोश करोगी मह-जबीं
तेरे जिस्म की खुशबू मेरा वक़ार गिराता है

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9 HOURS AGO

ज़िंदगी में दोहरापन आने से सारी सोच खो गई
इंकलाबी ज़ुबां अब सियासत के गलियारे में सो गई
सियासी भूचाल में कोई मुअज़्ज़ज़ नहीं बचा
कैसा खेल जवानी को फंसा है इसने रचा...
मोबाइल के सहारे पोर्न की ज़िंदगी जीते फ्लैट
तरक्की और जदीदियत में खर्राटे लेते हुए रैट
लिबास की अदला बदली से जेंडर तक पहुंची
बाल ही नहीं अब पेट में मर्द के बच्चेदानी पहुंची
दर्द समझना था अगर तो उसको सहारा देते
दिखावे को नहीं उसकी घुटन अपना लेते..
आह! क्या खेल सियासी जदीदी ताजिर ने फैलाया
अब तो फ़ौजी भी छल-छिद्री से दिखे घबराया
हर तरफ सवाल का कोई उत्तर नहीं नज़र आता
हां! इसने क़र्न-हा को मज़हब और सेक्स से भरमाया।

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9 HOURS AGO

दस्तक ए बारिश से भीगी हुई रातें
या बयां करूं अश्क से ही तर वाली

निगाह-दार जैसा भीगता हुआ कोई
या आशिक़ सा खड़ा दरीचे में कोई

पस-ग़ीबत से सुनी हुई भीगी रातें
या ख़ुद-फ़िगन की चुनी भीगी रातें

दास्तां हैं तो अजब पर हैं ये हिरमाँ
किसानों के कटी फसल की भीगी रातें

कहीं यौवन पे छनकती हैं भीगी रातें
अख़्तर कहीं विरहा की फ़फकती रातें

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19 HOURS AGO

कैसी तरबियत और तालीम
झूठी कसम और खाएं हलीम
हासिल भी कुछ हुआ नहीं
बने फिरते थे शहजादे सलीम

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22 HOURS AGO

बहुत सब्र से रुसवा हुआ था
पर ज़हन बेसब्रा निकला है

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22 HOURS AGO

सोचता हूं दोबारा इश्क़ कर लूँ
मगर पहली शादी ही डरा देती है
( Humour... लिखना ही डर)

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22 HOURS AGO

काश! इश्क़ में सिफ़ारिश चलती
सारे सड़क छाप आशिक़ जोड़ों में होते
( It may happen..

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