saloni sharma   (Saloni sharma)
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जो लिखा हो स्वयं से स्वयं को स्पर्श करके....
Joined 5 April 2019


जो लिखा हो स्वयं से स्वयं को स्पर्श करके....
Joined 5 April 2019
11 NOV 2024 AT 8:30

मुश्किल से लड़कर आसान बन जाना सरल है
कठिन तो सरल से लड़कर सरल बनना है

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11 NOV 2024 AT 8:21

सबकुछ ठीक बनाये रखने के लिए जरूरी है
बिना धैर्य बिखराव ही बिखराव है

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8 NOV 2024 AT 12:54

सहूलियत इंसान को खोखला दर खोखला बनाती है
जबकि वह आरामदायक है
फिर भी
हो सकने वाले काम आसानी से मेहनत करने से बचाती है
सहूलियत
आसान होती है बहुत कठिनाई भरकर

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8 NOV 2024 AT 12:44

स्वयं को समझने के लिए है
कभी कभी आवेग तीव्र होकर उत्तेजित होते हैं
उन्हें निस्तेज करने के लिए संयम जीवनभर के लिए है।

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12 FEB 2024 AT 9:39

ऐसी शिक्षा किस काम की
जो तुम्हें मनुष्य न बना सके
बनो तो मनुष्य बनो
जीवन तो सभी योनियां जी ही रही है फिर एक यही क्यों।

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26 DEC 2023 AT 19:48

हर आहट को पहचानने में
हर घबराहट को जानने में
बताने में ,जताने में वह सब जो जरूरी है
खुद को समझाने में
थोड़ा सब्र है तो जरूरी

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14 SEP 2023 AT 15:13

ओ हिन्दी
तुम सबमें समरस घोले रखना
गिरते हुए मन-मस्तिष्क को अपनी वाणी से उत्तिष्ठ बनाना
जो फिसल गए गर अनायास कहीं
तुम सम्भाल लेना कर प्रयास वहीं
जो तुम खिलखिलाकर प्रस्फुटित हुई जहां
समझा देना मर्म स्वदेश का सहर्ष वहां
करते हैं नमन तुमको तुमसे पूर्ण होकर
हिन्दी दिवस है आज मनाते साक्षर सम्पूर्ण होकर

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20 JUN 2023 AT 17:36

आशाएँ
ऊचाईयों की ही श्रेष्ठ हैं
अन्य सब निमित्त ही समझो
जिनका पूरा होना या पूरा करना उतना महत्व नही रखता
जितना कि
ऊचाइयों भरे उद्देश्य सफलता के
स्वयं को उत्तिष्ठ विचारशील बनाये रखना भी एक साधना है जिसे किसी अड़चन या मुश्किल में भी अडिग बनाये रखना होता है

इसीलिये श्रेष्ठ कामनाएं उत्कृष्टता देती हैं

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17 OCT 2022 AT 9:34

बेशक ऊँचाईयां
ऊंची ही होती हैं जिनमें रमी हैं दूरियां मेहनत विश्वास
हर पंछी इन तीनों के सहारे ऊँचाई तक चला जाता है
और मनुष्य भी
कोई कौतुहल यदि शेष रहता है तो वो विश्राम का है
मन के
उमंग के
उद्देश्य के
जिनमें ठहराव चिंतनीय है

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24 SEP 2022 AT 15:41

रेखाएं....
अमिट पहचान की
हथेलियों में
मन में
मस्तक पे
या विचारधाराओं में
जब बनकर उभरती है तब पहचान लेती है हर नई परिभाषा में
बनती कम बिगड़ती ज्यादा नजर आती है हर आम निराशा में....

डूबकर निखरों हर क्षण
प्रयत्नों से खुद को तराशों
उम्मीदों को सकारों
और जुटे रहों सुकर्मों में
तब देखना
रेखाएँ....
कितना बोलती हैं।

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