मुश्किल से लड़कर आसान बन जाना सरल है
कठिन तो सरल से लड़कर सरल बनना है-
सबकुछ ठीक बनाये रखने के लिए जरूरी है
बिना धैर्य बिखराव ही बिखराव है-
सहूलियत इंसान को खोखला दर खोखला बनाती है
जबकि वह आरामदायक है
फिर भी
हो सकने वाले काम आसानी से मेहनत करने से बचाती है
सहूलियत
आसान होती है बहुत कठिनाई भरकर-
स्वयं को समझने के लिए है
कभी कभी आवेग तीव्र होकर उत्तेजित होते हैं
उन्हें निस्तेज करने के लिए संयम जीवनभर के लिए है।-
ऐसी शिक्षा किस काम की
जो तुम्हें मनुष्य न बना सके
बनो तो मनुष्य बनो
जीवन तो सभी योनियां जी ही रही है फिर एक यही क्यों।-
हर आहट को पहचानने में
हर घबराहट को जानने में
बताने में ,जताने में वह सब जो जरूरी है
खुद को समझाने में
थोड़ा सब्र है तो जरूरी-
ओ हिन्दी
तुम सबमें समरस घोले रखना
गिरते हुए मन-मस्तिष्क को अपनी वाणी से उत्तिष्ठ बनाना
जो फिसल गए गर अनायास कहीं
तुम सम्भाल लेना कर प्रयास वहीं
जो तुम खिलखिलाकर प्रस्फुटित हुई जहां
समझा देना मर्म स्वदेश का सहर्ष वहां
करते हैं नमन तुमको तुमसे पूर्ण होकर
हिन्दी दिवस है आज मनाते साक्षर सम्पूर्ण होकर-
आशाएँ
ऊचाईयों की ही श्रेष्ठ हैं
अन्य सब निमित्त ही समझो
जिनका पूरा होना या पूरा करना उतना महत्व नही रखता
जितना कि
ऊचाइयों भरे उद्देश्य सफलता के
स्वयं को उत्तिष्ठ विचारशील बनाये रखना भी एक साधना है जिसे किसी अड़चन या मुश्किल में भी अडिग बनाये रखना होता है
इसीलिये श्रेष्ठ कामनाएं उत्कृष्टता देती हैं-
बेशक ऊँचाईयां
ऊंची ही होती हैं जिनमें रमी हैं दूरियां मेहनत विश्वास
हर पंछी इन तीनों के सहारे ऊँचाई तक चला जाता है
और मनुष्य भी
कोई कौतुहल यदि शेष रहता है तो वो विश्राम का है
मन के
उमंग के
उद्देश्य के
जिनमें ठहराव चिंतनीय है-
रेखाएं....
अमिट पहचान की
हथेलियों में
मन में
मस्तक पे
या विचारधाराओं में
जब बनकर उभरती है तब पहचान लेती है हर नई परिभाषा में
बनती कम बिगड़ती ज्यादा नजर आती है हर आम निराशा में....
डूबकर निखरों हर क्षण
प्रयत्नों से खुद को तराशों
उम्मीदों को सकारों
और जुटे रहों सुकर्मों में
तब देखना
रेखाएँ....
कितना बोलती हैं।-