वो कहानी आज भी अधूरी पड़ी है
जो तूने कहा था साथ मिल के लिखेंगे
इस आस में,आहिस्ते से वो कागज़ कलम वाली मेज
वहीं खिसका दी थी मैंने
कि तुम आओ... तो समा जल्दी ही बंध जाए
वो चाय की प्याली वहीं उल्टाई पड़ी है
वो सूखे गुलाब की कलियां भी वहीं फूलदान में रखी हैं
तुम्हारा मफलर भी तो वहीं कुर्सी पर ही रहता है
हां कभी कभी तकिया बना के सो लेती थी
तुमने कहा था .., तुम आओगे
इस आस में कभी ताला नहीं लगाया उस कमरे में
कहीं चाभी खो गई तो
हां एक मुद्दत जरूर हुई....,,धूल हटाए हुए
कि जब तुम आओ तो
परत दिखा के शिकायत कर सकूं
कि कितनी देर से आए हो,
तुम आए
पर ये क्या
तुम तो उस कमरे में गए ही नहीं
कहानियां तो बहुत सुनाई तुमने पर
हमारी कहानी का ज़िक्र कहीं नहीं आया
और वो बारिश वाला दिन
वो भी तो याद नहीं था तुमको
हालांकि वही धानी साड़ी पहनी थी मैंने
तो वो वादा ,,,कैसे ही याद होता
बात तो घंटों की तुमने,,,,पर कॉफी के साथ
तुमने चाय पीना छोड़ दिया था
और इसके साथ मैंने
वो कहानी पूरी होने की उम्मीद।
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