यूं तो ना कर नुमाइश दिलों की
कहीं वादा, कहीं फरमाइश मिलोगी !!
कभी तो किसी का ऐतबार कर
दिखावा बदल कभी प्यार कर !!
बुजदिल सा रिश्ता निभाता है
हर-एक से इश्क जताता है !!
हर-रोज बिकने लगा है सरेआम तू
काली फितरत तेरी बेईमान तू !!
ख़ुद को समझा बड़ा खिलाड़ी है
सच है इंसा नहीं तू मदारी है !!-
गुजरते हुए लम्हें थम ना पाए
चोट दिल को लगीं मरहम ना पाए !!
होंठ हंसते रहे आंखें नम हो गए
मानों पल में ही सारे ख़तम हो गए !!
ख़्वाब जल से गए सपने झुठे हुए
ख़ुद से रूसवा हुईं अपने रूठे हुए !!
पल बिते हुए आज़ हादसे हुए
बस यादें बचीं जो कल थे जिएं !!
क्यों बेवफ़ा सनम से वफ़ा हों गए
एक बार नहीं हर दफ़ा हों गए !!-
रंग दे चुनर मोरे सतरंगी
तोहसे लागी लगन पिया अतरंगी !!
बन जाऊं जोगन तेरे नाम की
बिन तेरे रहूं ना किसी काम की !!
तेरे प्रित में होऊं मतवाली रे
बिन तेरे ना होली दीवाली रे !!
रंगदार सजन भर मारो पिचकारी
हर-रंग बिखरे बने फुलवारी !!
रंग चढ़े ऐसे मुश्किल छुड़ाना
पिया जी मोहे ऐसे रंग लगाना !!-
उम्र की चार दिवारी बिच कभी ऐसा भी पल आएगा
मां की लाड़ो बिटिया है एहसास दिलाया जाएगा !!
सज धज कर आने का फ़रमान सुनाया जाएगा
बाबा के संस्कारों का मोल-भाव कराया जाएगा !!
कभी रंग-रूप, कभी चाल-ढाल, कभी कलम थमाया जाएगा
कभी तीखी इशारों में काग़ज़ टुकड़ा हर-तरफ बढ़ाया जाएगा !!
खिलती कलियां चुप सी होगी ना हाल बताया जाएगा
दर्द भी ख़ुद में समेटे हुए आंसू भी छुपाया जाएगा !!
कब तलक बिटिया के बाबुल कर्जदार जताया जाएगा
समाज का पाला सौदाई रिवाज़ बताया जाएगा !!-
सांवली सी रात हो बूंद-बूंद बरसात हो
कुछ तुम कहो कुछ हम कहें दरम्याने इश्क तलाश हों !!
पास ना आना दूर ना जाना उलझन भरें हालात हो
तेरी एक छुअन से बिखरन से सारे जज्बात हों !!
खोकर सुध-बुध बिसराऊ कोई रश्म रिवाज़ ना रास हों
चाहत तुझमें छुप जाऊ जैसे लिपटा लिबास हों !!
दो जिस्म तपे वर्षों प्यासे अनकहे सारे एहसास हों
चलता सा पल थम सा जाये हर-पल ही कुछ खास हो!!
तुझ संग अरमानों का मुक्कमल एक कायानात हों
तु ही तु बस याद रहे कभी तो ऐसी मुलाकात हों !!-
एक दो की बात किया लिस्ट लाखों का तैयार
हाथ जोड़ सहमा बाबुल जैसे बेटी जन किया पाप हजार !!
लगा दी पूंजी जीवन की बेटी ख़ुशी से रहें हमार
जाने कितने झेल सितम दहेज़ रक़म किया तैयार !!
कर डाला बेघर ख़ुद को और बसा दिया संसार
बिटिया लिए लुटाता रहा मान पिता हर बार !!
बिक गया इंसान कहीं इंसानियत हुआ शर्मसार
लगा दी बोली परवरिश की किमत पैसे चार !!
बढ़ चला रीत जो कल तक कहता दुनिया रश्म रिवाज़
बेतहाशा चाहत रख दहेज़ बना व्यापार !!
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थक चुकी है मुसाफ़िर _पहनकर झूठी हंसी की नक़ाब
मासुमियत की कद्र कहा होती है जालिमों के शहर में !
वो मिट गया लकिरों से _जिसकी आरज़ू मुसलसल की
खिलते ही नहीं अब गुल-ए-वफ़ा हैवानों के नज़र में !
फासला-ए-दरमियां _बढ़ चला यूं आसमां सा
उड़ चला है परिंदा वो नई जहां के ख़बर में !
जलते हैं कश्मकश _कुछ यादों की तिल्लियां अभी
फक़त बुझ जाएंगे दबकर कहीं ज़िगर में !
महज़ गलतियों को समेट लूं_निस्बत की स्याही से
दिल दरिया बन क्यों उलझ गया सवालों के भंवर में !
Saloni patel
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मैं राधा बा-की छोरी तुम श्याम पिया बन जाओ ना
मैं नीत उठ ध्यान तेरी लाऊं तुम रोम-रोम मुझे बसाओ ना !!
तुम संग सखियन मैया को बोल मधुवन को मिलने आओ ना
मैं कांधे पे सर रख सोऊं कोई प्रेम राग सुनाओं ना !!
मैं झूम उठू संग साथ तेरे दुनिया का मोह सताए ना
जो चढ़ कर फिर से ना उतरे ऐसे रंग में रंग जाओ ना !!
दो जिस्म बने एक जान सनम मिलकर कसम ये खाओ ना
ये रिश्ता हो जनम जनम का बंधन ऐसा बांध जाओ ना !!
हो नाम से तेरे नाम जुदा कोई रूह जुदा कर पाएं ना
बन जाएं ये मिशाल सदा ये प्रेम अमर कर जाओ ना !!
Saloni patel
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