Salil Saroj   (सलिल)
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Joined 21 February 2018


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Joined 21 February 2018
28 NOV 2024 AT 18:12

लोग जिसे सब के सामने खराब कहते हैं,
अकेले बंद कमरे में उसको शराब कहते हैं। 1

जिनकी बात सुनकर मुझसे लड़ने आए हो,
वो लोग तो हर लड़ाई को इंकलाब कहते हैं। 2

उसे मालूम ही नहीं कि वो बला क्या है,
कोई माहताब तो कोई ग़ुलाब कहते हैं। 3

दो इंसान मिल कर एक रह जाते हैं,
मोहब्बत में इसी को हिसाब कहते हैं। 4

जिनसे खूबसूरती भर गई फिज़ाओं में,
कभी राबी, कभी झेलम, कभी चेनाब कहते हैं। 5

जिसका जिक्र किसी सवाल में न था,
उसी को दोहरा कर लोग जवाब कहते हैं। 6

सलिल








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28 NOV 2024 AT 17:39

उसे ख़बर है कि मुझे कोई ख़बर नहीं,
यही आख़िरी रात है, आगे कोई सहर नहीं । 1

हैं बेहतर तमाम अशरार इस चमन में,
मेरे लिए दूसरा कोई उससे बेहतर नहीं । 2

मैं कब थका हूँ साथ चलते रहने से,
मुश्किल है कि मिलता कोई रहबर नहीं । 3

कोई बादल तो कोई धूप चुरा ले गया है,
वरना मैं जानता हूँ कि ये ज़मीन बंजर नहीं । 4

चाँद को देखने से वो मिल जाए, जरूरी नहीं,
इसीलिए मैं चाँद को देखता हूँ लेकिन अक्सर नहीं । 5

लड़के कितने नासमझ होते हैं इश्क में कि जानते नहीं,
लड़कियाँ वक़्त माँगती है, कोई गहना, कोई ज़ेवर नहीं । 6

सलिल

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22 NOV 2024 AT 20:37

आदत है इसकी, ये शहर बहुत सवाल करता है,
जवाब दे भी दो, फिर भी जीना मुहाल करता है । 1

मैं कायल हूँ उसके अक्ल और हुनरमंदी की,
वो कुछ नहीं करता, बस कमाल करता है । 2

मैं लाख छुपा लूँ खुद को लिबास - ए - तहजीब में,
पर आँखें बता देती हैं, वो मेरा क्या हाल करता है । 3

माँ जानती है कि वो कभी लौट कर नहीं आने वाला,
फिर भी बेटा, घर आने का वादा हर साल करता है l 4

उसे मुझे नज़र भर के देखे इक ज़माना हुआ,
पर लोग कहते हैं कि बहुत ख़्याल करता है । 5

जिनसे कदर नहीं हो पाता पत्तों और शाखों का,
वक़्त बीत जाने पर वो पेड़ बहुत मलाल करता है । 6

सलिल

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2 FEB 2022 AT 19:23

अख़बार बदलने से समाचार नहीं बदलते
किरदार बदलने से अदाकार नहीं बदलते— % &

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29 JAN 2022 AT 19:31

दिल को शुकून , चैन - ओ - करार आता था
जब मसअला यूँ ही बातों से हल हो जाता था— % &

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25 JAN 2022 AT 10:24


आज सरहद पे जहाँ लकीरें हैं
वहाँ कभी कोई घर होगा
चाँदनी में नहाई हुई शाम होगी
रोशनी में भींगा हुआ सहर होगा



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20 JAN 2022 AT 17:44

मैं मंझधार में हूँ  , किनारा  चाहिए
मुझे तेरी जुल्फों का सहारा चाहिए

रोशनी,मेरी आँखों में चुभने लगी है  
मुझे तेरी काजल का अंधेरा चाहिए

मेरी  साँसों  में  एक  ही  खुशबू हो
वो  भी तेरे  बदन से उतारा चाहिए

तेरा आँचल ही काफी है कुर्बत* को
मुझे न कोई सलमा -सितारा चाहिए

ज़िन्दगी दर्द से भी बसर हो जाएगी
लेकिन दर्द भी, बस तुम्हारा चाहिए

तुझ से मिल कर मैं फना हो जाऊँ
तो ऐसी  मौत  मुझे दोबारा चाहिए

*कुर्बत-नज़दीकी

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17 JAN 2022 AT 17:01

न किसी की छत, न किसी की नज़र में रहता है
चांद, न जाने आजकल , किस शहर में रहता है

बचपन नजर-बंद है चका-चौंध चार- मीनारों में
अब न तो ये मैहर में रहता है, न नैहर में रहता है

हमने बचा लिया खुद को, तूफान की जद में लाकर
बर्बाद वो हुआ, जो वक्त-बे-वक्त घर में रहता है

मालूम था कि मारे जाएंगे, फिर भी प्यार कर लिया
अब देखें, हमारा नाम किस निगाह-ए-खंजर में रहता है

मेरे वतन में मौसम नहीं, माली तय करता है
कि फूल यहाँ , किस शज़र में रहता है

खुदा किसी दर-ओ -दीवार का बंदी नहीं
वो हर किसी मजहर* में रहता है

*मजहर - छवि

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27 DEC 2021 AT 14:48

दुनिया की छोड़ो, मेर वश में तुम भी नहीं
तुम्हारी  ख़ुशी  नहीं, तुम्हारा  ग़म भी नहीं    1

मेरी तासीर पे  अब कुछ असर करता नहीं
तुम्हारी सच्चाई नहीं, तुम्हारा वहम भी नहीं   2

तुम्हें कैसे पुकारूँ मैं , समझ में आता नहीं
तू मेरा दुश्मन नहीं, तू मेरा सनम  भी नहीं    3  

तुम्हें याद करने की कोई वाज़िब वजह नहीं
तू मेरा  दर्द  नहीं, तू  मेरा  मरहम  भी नहीं  4  

तुम्हें ना देखें तो अब मरने की नौबत नहीं
तू मेरा  चैन  नहीं, तू मेरा  मातम भी नहीं    5

कौन कहता है तुम्हारे बग़ैर जिया जाता नहीं
तू  मेरा  वायदा नहीं, तू  मेरा कसम भी नहीं 6

सलिल


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17 DEC 2021 AT 17:56

कहीं झरना तो कहीं कंवल लगता है
तुम्हारी आँखों में कोई जंगल लगता है

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