मैं तो शरीफ़ बनके रहना चाहता हूं,
पर जमाना हमें रहने नहीं देता है..
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जैसे किसी किताब 📖 के पन्ने..👈
"वक़्त बिताने के लिए कभी रिश्ते न बनाएं,
क्योंकि हो सकता है कि कोई दूसरा शख़्स
इसके बारे में बहुत संजीदा हो"-
रास्ते वही है मुसाफिर वही है..
दिन भी वही रातें भी वही है..!!
ज़िंदगी के हर गम भी वही है..
बस कुछ भी नया नही है..!!
मगर अपने अपने मुक़ाम पर..
तुम भी नही और हम भी नही हैं..!!-
"ईद मुबारक"
अल्लाह की रहमत और बरक़त आपकी ज़िंदगी
को खुशियों से भर दे,,
कामियाबी और तरक्की तमाम दरवाजे आपके
लिए हमेशा खोल दे..-
"जरूरत तोड़ देती है गरुरत के ढांचे को,,
अगर लोगों को गम नहीं होता,,
तो हर शख्स अपने आप को ख़ुदा समझता"-
आज फिर तेरा ज़िक्र मेरे घर में हुई..
आज तेरे ज़िक्र से मुझे तेरी बहुत फ़िक्र हुई..-
इंसान ख्वाहिश में,,
बहुत कुछ खो देता है..
इंसान ये भी भूल जाता है,,
के आधा चाँद भी खूबसूरत होता है..
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"उम्मीदों" से बंधा हुआ
ज़िद्दी परिंदा है इंसान..
जो मुर्दा भी "उम्मीदों" पर
और ज़िंदा भी "उम्मीदों" से है..
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तुम तो कहानी की असल किरदार हो..
मै तो उस किताब का बस एक पन्ना हूं..-