Sakshi Tak  
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Joined 27 May 2019


Joined 27 May 2019
15 AUG 2024 AT 9:43

समाज और नारी

क्यों रुक जाती है, हम पर आकर सारी आजादी ? 
और सिमट जाते हैं सारे फैसले 
क्यों बढ़ जाती है सारी बंदिशे ?
और लग जाते हैं सारे कायदे कानून 
क्या याद नहीं 15 अगस्त, 1947🇮🇳!
क्या, थी सिर्फ आजादी उन पुरुषों के लिए ??
या था नहीं कोई ऐसा दिन, महिलाओं के हक में 
क्यों लगता है, शिक्षा भी कोई स्वप्न जैसा 
क्यों होता नहीं कभी सवेरा 
क्यों सिमट जाता है उसका संसार, 
घर की चारदीवारी में.. 
क्यों यह दुनिया उसे अनजान सी लगती है !
क्यों समझा नहीं जाता उसे किसी के काबिल ?
क्या था नहीं कोई हक, उसका अपने सपनों पे
या थे गुलाम, वो अब भी किसी और के !
क्या ! थे मायने बस यही आजादी के 
या फिर होगा नया सवेरा ?
क्या, बदलेगी कभी उसकी भी दुनिया ?? 
या फिर लिखनी होगी, कोई नई कविता 
क्या स्वीकार ले, इसे अपनी किस्मत समझ कर 
या उड़ेगा पक्षी, कभी अपनी डोर से हट कर 
हैं इंतजार उस दिन का 
और तब तक रहेगा, 
जब होंगे सपने उनके भी पूरे 
मिलेगी उनको वहीं आजादी 
वो खुला आसमान जहां होगा..
वो खुला आसमान जहां होगा...
    ~Sakshi Tak

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28 MAY 2024 AT 21:03

वो फिर आया कहने को
शायद कुछ वक्त देने को
पूछा मैंने
"फिर क्या बात हों गई
या कोई मुलाकात हो गईं..
कोई वजह होगी तुम्हारे आने की
फिर बेवजह चले जाने की! "

कुछ बोलता उसके पहले जवाब मिल गया
एक कागज़ था उसके हाथ
जो गलती से गिर गया
बोला "फिर किसी दिन आऊंगा
सारा सच तुम्हें बताऊंगा
हो सके तो विश्वास कर लेना
तुम तब तक इंतजार कर लेना "

वो आया था कुछ कहने को
शायद कुछ वक्त देने को!!
-Sakshi Tak

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2 DEC 2021 AT 12:48

तुमसे मुलाक़ात भी एक अजीब दास्तां है..!
कुछ गलती मेरी
कुछ इक्तफाक से हमारा वास्ता हैं ,
वो सर्द रातें, वो तुम्हारी बातें
वो बिताए जो घंटे आठ, एक दूजे के साथ..
तो दिल में एक ख़्याल आया..!
की क्यों ना तुमपे कोई सवाल आया ?
क्या कोई पिछले जनम का नाता हैं ..,
क्योंकी इतना जल्दी कोई कहां रास आता हैं !!
ना जाने ये सफ़र कितना लंबा था
पर जो शुरू किया, तो साथ तो चलना था ,
माना की मंजिले अलग थी हमारी ,
पर साथ हम मुसाफ़िर तो बन सकते थे ..!
ना एक कदम आगे, ना एक कदम पीछे
हम साथ भी तो चल सकते थे ..!
फ़िर ख़्याल ने तोड़ी चुप्पी,
दोस्ती ने थामा अपना हाथ,
जहां ना कोई सवाल था
ना किसी जवाब की गुंजाइश ..!!
~Sakshi Tak

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31 OCT 2021 AT 9:49

छुड़ा ना पाई मैं इस आदत को
मैं इसमें डूबती चली गई
नशे की लत में
मैं ख़ुद को लूटती चली गई
~Sakshi Tak

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26 AUG 2021 AT 10:36

कब तलक इन ऊंचाइयों से बेखबर रहूं
आज ऊंची उड़ान भर लेने दो...
मत बांधो मुझे ज़माने की बन्दिशों से
मुझे आज़ाद रहने दो ।।

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11 JUL 2021 AT 20:45

ऐ मन....!
है कहा तू, अब तेरा पता दे
या खो गया कही, बस इतना बता दें..

विचलित है कही, या खफा है खुद से
नज़दीक है किसी के, या जुदा है खुद से..

दिल और दिमाग के बीच फसा है क्या !
किसी सवाल ने तुझको गेरा है क्या !

चुप क्यों हैं तू, कुछ तो बता
सही और ग़लत के, मायने भी समझा..

और..
सच बोलता है गर, तो तुझको सताता क्या है !
और झूठ बोलता है, तो सबको बताता क्या है !

ख़ुश हैं बहुत, या कही उदास तो नहीं है !
ये सब भी सच है या,
कही तेरा वहम तो नहीं है..

ऐ मन..
है कहा तू, अब तेरा पता दे
या खो गया कही, बस इतना बता दें..!!
~Sakshi Tak

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30 JUN 2021 AT 19:04

दूर रहा करो तुम
मेरे करीब ना आया करो ।
नफ़रत करना चाहता हूं तुमसे
इस कदर प्यार तो ना बढ़ाया करो ।।
~Sakshi Tak

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30 JUN 2021 AT 15:29

ख़्वाबों की दुनियां से एक ख़्वाब लिए बैठी हूं !
कुछ लिख रही हूं , कुछ सोच रही हूं !!
खो गई हूं कहीं, किसी जुगनू की तलाश में
पर समझ नहीं आता..
अब जुगनू अंधेरों में चमकते नहीं !
या बस मुझे ही दिखाई नहीं देते ?
लगता है जैसे सबकुछ छूट सा गया हो
खुली आंखों से देखे सपने
बिखर रहे थे,
अब माला में उन्हें फिर से पिरो रही हूं
सालों से जिसके पीछे भाग रही थी
अब वो छूट रहा था!
मैं खो गई थी
और मेरा साया भी मुझे ही ढूंढ़ रहा था,
अब किसी सवाल का कोई जवाब नहीं था
बस यही एक सवाल था!!
~Sakshi Tak

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30 JUN 2021 AT 14:10

नज़रे तो चुराई थी हमने
पर आंख में आंसू थे ।
कहा तो कुछ नहीं
पर कहना तो बहुत कुछ चाहते थे ।।
~Sakshi Tak

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22 JUN 2021 AT 23:59

फ़र्क पड़ता था तुमसे
इसलिए नाराज़ रहते थे,
अब मतलब नहीं रहा
और नाराज़गी भी !!

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