दावे पाव गुजर गई खुशियां
गम की आड ने आहट तक न होने दी-
तारीखो पर लगी छाप नहीं छूटती
हिम्मत टूट जाती है मगर उम्मीद नहीं छूटती-
तुम कहो जितना मोह माया इसे
ये उतना ही जाल बिछाए गा
प्रेम नगर में प्रेम रोग से
लगता है आवारा बच न पाएगा
मन में भ्रम पाले न जाने कितने
कितनो से आस लगाए गा
है अमीर दिल बहुत मगर
इश्क़ की चौखट पर फकीर बन जाएगा
मांगेगा दिन रात जिसे रब से दुआ में
वो किसी और के हक में आएगा
किस्मत कहो या हादसा
इश्क़ के दलदल में फंसकर दिल बहुत पछताएगा-
निभाने वालो को नहीं होती नफरत साहब
वो बिछड़ने के बाद भी मोहब्बत करते है-
आपकी मर्जी के बिना कहा पत्ता हिलता है
हम वो फूल है जो कांटो के बीच पलता है
ऐसा कौनसा पत्थर है जो पिघलता है
दिल वो मोम है जो अंगरो सा जलता है
इश्क़ करता है वो दर्द से कहा डरता है
घायल वो मन है जो अकेले बैठ हाथ मलता है
धुंधला सा एक चेहरा उसका नजर आता है
याद वो ज़हर है जो खाने के बाद खलता है
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